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________________ अंतरपरूवणा ६५ मि० पंचणं क० जह० अज० णत्थि अंतरं । वेद० - आउ०- णामा० अपजतभंगो । एवं वेडव्वियमि० - आहारमि० । णवरि वेडव्वियमि० आउ० णत्थि अंतरं । १५५. वेउव्वियका० घादि०४ जह० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज० जह० एग०, उक्क० बेसम० । वेद० आउ० णामा० जह० ज० एग०, उक्क० अंतो० । अज० जह० एग०, उक्क० चत्तारि समयं । गोद० जह० णत्थि अंतरं । अज० एग० । एवं आहारका० । णवरि गोद० णाणा० भंगो । कम्मइ० सत्तणं क० जह० अज० णत्थि अंतरं । णवरि वेद० णामा० जह० अज० [एग०] | एवं अणाहारका • । मिश्रकाययोगी जीवों में पाँच कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभाग बन्ध का अन्तरकाल नहीं है । वेदनीय, आयु और नामकर्म का भंग अपर्याप्तकोंके समान है । इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहार मिश्र काययोगी जीवों में जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें आयु कर्मका अन्तरकाल नहीं है । 1 विशेषार्थ - औदारिक काययोगमें चार घातिकर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध क्षपकश्रेणिमें होता है और उपशमश्रेणिमें उपशान्तमोहके कालसे औदारिककाययोगका काल अल्प है, इसलिए इसमें चार घातिकर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्ध के अन्तरकालका निषेध किया है । वेदनीय और नामकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध अन्यतर परिवर्तमान मध्यम परिणामवालेके होता है । यतः दारिकाययोगमें यह अवस्था कमसे कम एक समयका अन्तर देकर और उत्कृष्टसे कुछ कम बाईस हजार वर्ष अन्तरसे प्राप्त हो सकती है, इसलिए इसमें इन दोनों कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम बाईस हजार वर्ष 'कहा है | अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चार समय स्पष्ट ही है, क्योंकि इनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल चार समय कहा है। इससे इनके अजघन्य अनुभागबन्धका उक्त प्रमाण अन्तरकाल उपलब्ध होता है । आयुकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामोंसे होता है । तथा श्रदारिककाययोगमें प्रथम त्रिभागसे दूसरी बार आयुबन्धके काल में उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष है, इसलिए इसमें आयुकर्म के जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष कहा है । गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध बादर अभिकायिक और बादर वायुकायिक जीवोंके होता है । उसमें भी बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंकी उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष है । इसलिए इसमें गोत्रकर्मके जधन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन हजार वर्ष कहा है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर दो समय स्पष्ट ही है । शेष कथन सुगम है । १५५, वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें चार घाति कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । वेदनीय, आयु और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। इसी प्रकार आहारककाययोगी जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मका भंग ज्ञानावरणके समान है। कार्मणकाययोगी जीवों में सात कर्मोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है । इतनी विशेषता है कि वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये । ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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