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________________ कालपरूवण बेसमयं । अज० जह० अंतो०, उक्क० तत्तीसं साग० सादिः । वेद०-णामा० जह० ओघ । अज० जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं० सादि। ११६. वेदग० धादि०४-गोद० जह० खइगभंगो। णवरि गोद० जह० जहण्णु० एगस० । अज० जह० अंतो०, उक्क० छावढि सा० । वेद०-णामा० जह० ओघं । अज० जह० एग०, उक्क० छावहि । ११७. उवसम० घादि०४-गोद० जह० एग० । अज० जह० उक्क० अंतो० । वेद०-णामा० जह० ओघं । अज० जह० एग०, उक्क० अंतो० । एवं सम्मामि० । सासणे धादि०४-गोद० जह० जह० एग०, उक्क० बेसमयं । अज० जह० एग०, उक्क० छावलियाओ। वेद०-णामा० जह० ओघं। अज० णाणा मंगो। आहार सत्तण्णं कम्माणं जह० ओघं । अज० जह० एग०, उक्क० अंगुल० असंखेंज.। एवं कालं समत्तं । जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका काल ओघके समान है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। विशेषार्थ--यहाँ गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय कहा है सो इसका कारण यह है कि इसका जघन्य अनुभाग चारों गतिके सम्यग्दृष्टि जीवके उत्कृष्ट संक्लेश परिणामों से बँधता है । तथा इसे इन परिणामोंको पुनः प्राप्त करनेमें अन्तमुहूर्त काल लगता है अथवा एक बार उपशमश्रेणीसे उतरकर पुनः उपशमश्रेणीपर चढ़नेका काल अन्तर्मुहूर्त है,इसलिए यहाँ गोत्रकर्मके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है। २१६. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घाति कर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका काल क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है उत्कृष्ट काल छियासठ सागर है । वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका काल ओघके समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छियासठ सागर है। विशेषाथ-वेदकसम्यक्त्वमें गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध मिथ्यात्वके अभिमुख हुए जीवके जघन्य अनुभागबन्धके समय होता है, इसलिए इसके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। शेष कथन सुगम है। ११७. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका काल ओघके समान है। अजघन्य अनुभामबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार सम्यगमिथ्यादृष्टि वोंके जानना चाहिए। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल छह आबलि है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका काल ओघके समान है । अजघन्य अनुभागवन्धका काल ज्ञानावरणके समान है। आहारक जीवोंमें सात कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका काल ओघके समान है। अजयन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और अकृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इस प्रकार काल समाप्त हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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