________________
महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ११३. किण्णाए धादि०४ जह० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अज० जह. एग०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि० । वेद०-गामा-गोदा० जह० ओघं । अज० णाणाचरणभंगो। णवरि गोद० अज० जह० अंतो० । णील-काऊणं सत्तण्णं कम्माणं जह० पढमपुढविभंगो । अज० अणुक्कस्स० ।
११४. तेउ-पम्मासु धादि०४ जह० एग० । अज० जह. अंतो०, उक्क० बे-अट्ठारस साग० सादि० वेद०-णामा०-गोदा० जह० सोधम्मभंगो। अज० जह० एग०, उक्क० णाणावरणभंगो । सुक्काए घादि०४ जह० एग० । अज० अणुकस्सभंगो। वेद०-णामा-गोदा० जह० जह० एग०, उक्क० चत्तारि समयं । अज० जह० एग०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि० ।
११५. खइगे धादि०४-गोद० जह• एग० । णवरि गोद० जह० एग०, उक०
कर्मोंका भङ्ग अपगतवेदी जीवोंके समान है।
११३. कृष्ण लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अजघन्य अनुभागवन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल साधिक तेतीस सागर है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका काल ओधके समान है। अजघन्य अनुभागनन्धका काल ज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है। नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंमें सात कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका काल पहली पृथिवीके समान है। अजघन्य अनुभागबन्धका काल अनुत्कृष्टके समान है।
विशेषार्थ-कृष्णलेश्यामें चार घातिकर्मोंका बन्ध सम्यग्दृष्टि सर्वविशुद्ध जीवके होता है, इसलिए इनमें जघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय कहा है। इस लेश्यामें गोत्रका जघन्य अनुभागबन्ध सातवीं पृथिवीके नारकीके सम्यक्त्वके अभिमुख होनेपर अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धक समय होता है। यह जीव उसके बाद नरकमें अन्तर्मुहर्तकाल तक अवश्य रहता है, इसलिए इसके गोत्रकर्मके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है।
११४ पीत और पद्म लेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मोके जघन्य अनुभागबन्ध का जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका जवन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्टकाल क्रमसे साधिक दो सागर और साधिक अठारह सागर है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका भंग सौधर्मकल्पके समान है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल ज्ञानावरणके समान है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मोके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका काल अनुत्कृष्टके समान है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्म के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है।
विशेषार्थ—इन लेश्याओंमें अपने-अपने स्वामित्वका विचारकर काल ले आना चाहिए। कोई विशेषता न होनेसे यहाँ उसका स्पष्टीकरण नहीं किया।
११५. क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org