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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ९७. खइग० सुक्कलेभंगो। उवसम० सत्तण्णं क० उक्क० एग०। अणु० जह. उक्क० अंतो०। एवं सम्मामि० । सासणे सत्तण्णं क० उक्क० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अणु० जह० एग०, उक्क० छावलियाओ। णवरि घादि०४ उक्क० एग० । ९८. सण्णीसु पुरिसभंगो। आहारा० ओघभंगो । णवरि अणु० बादरएइंदियभंगो। अणाहारा० कम्मइगभंगो। एवं उक्कस्सं समचं ६६. जहण्णए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० घादि०४ गोदं च जह० अणु० जह० उक्क० एग० । अज० तिभंगो। वेद-णामा० जह० जह० एग०, उक्क० ६७. क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें शुक्लालेश्यावाले जीवोंके समान भङ्ग है। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। अनु अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें जानना चाहिये। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल छह आवली है। इतनी विशेषता है कि चार घातिकौके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्टकाल एक समय है। विशेषार्थ--उपशम सम्यक्त्वमें चार घातिकोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध उत्कृष्ट संक्लेशवाले, मिथ्यात्वके अभिमुख जीवके अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धके समय होता है। तथा वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धके समय होता है, इसलिए इसमें उक्त सातों कोके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय तथा अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। यह प्ररूपणा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके इसी प्रकार घटित हो जाती है, इसलिए इसमें उक्त सातों कोंके उत्कृष्ट और अनुरकृष्ट अनुभागबन्धका काल उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके समान कहा है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके चार घातिकर्मोका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मिथ्यात्वके अभिमुख अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागवन्धके समय होता है और वेदनीय, नाम व गोत्रका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सर्वविशुद्ध जीवके होता है। तथा सासादन सम्यक्त्वका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल छह श्रावलि है, इसलिए इसमें चार घातिकर्मोंसे उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय तथा अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल छह आवलि कहा है। तथा वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल दो समय तथा अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल छह आवलि कहा है। ८. संज्ञी जीवोंमें पुरुषवेदी जीवोंके समान भङ्ग है। आहारक जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि अनुत्कृष्ट अनुभागवन्धका काल बादर एकेन्द्रियोंके समान है। अनहारक जीवोंमें कार्मणकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है। विशेषार्थ-आहारक जीवोंका उत्कृष्टकाल अङ्गुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। बादर एकेन्द्रियोंकी कायस्थिति भी इतनी ही है, इसलिए आहारक जीवोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागवन्धका काल बादर एकेन्द्रियोंके समान कहा है । शेप कथन सुगम है । - इस प्रकार उत्कृष्ट काल समाप्त हुआ। ६६. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जवन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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