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________________ २० महावधे अणुभागबंधाहियारे अणु० णाणा भंगो। ओरालियमि० सत्तण्णं क० जहण्णु० एग०, अणु० जह• उक्क० अंतोः । एवं वेउव्वियमि०-आहारमि० । णवरि आहारमि० आउ० जह० एग०, उक० एग० । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो०। ८६. वेउवि०-आहारका० अट्ठण्णं क० उक्क० जह० एग०, उक्क० वेसम० । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो। कम्मइग० सत्तण्णं क० जहण्णुक० एग० । अणु० जह० एग०, उक० तिण्णिसम०।। १०. इत्थि. धादि०४ उक्क० ओघं । अणु० जह० एग०, उक्क० पलिदोवमसदपुधत्तं । वेद०-णामा-गोदा० जहण्णु० एग० । अणु० णाणावरणभंगो। एवं पुरिस० । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका काल ज्ञानावरणके समान है । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल एक समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है। विशेषार्थ--औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें पर्याप्त होनेके एक समय पूर्व उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, अतः इनमें सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय तथा अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूत कहा है। यही नियम वैक्रियिक मिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए, इसलिए इनमें भी सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुकृष्ट अनुभागवन्धका काल औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान कहा है। मात्र आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें आयुकर्मके कालमें कुछ विशेषता है। बात यह है कि इनमें आयुकर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध शरीर पर्याप्ति प्राप्त होनेके एक समय पहले सम्भव है। तथा इसी प्रकार शरीर पर्याप्तिके प्राप्त होनेके एक समय पहलेसे आयुबन्ध भी सम्भव है, इसलिए इनमें आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है। ८६. वैक्रियिककाययोगी और आहारकाययोगी जीवोंमें आठ कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें सात कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। विशेषार्थ-कार्मणकाययोगका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल तीन समय है। उसमें भी सात कर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अन्तिम समयमें होता है, क्योंकि चार घातिकर्मों के योग्य उत्कृष्ट संक्श परिणाम और वेदनीय, नाम व गोत्रके योग्य उत्कृष्ट सर्वविशुद्ध परिणाम वहीं सम्भव हैं। अतः इनके सात कर्मोंके उत्कृष्ट 'अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय और अनुकृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल तीन समय कहा है। शेष कथन सुगम है। ६०. स्त्रीवेदी जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका काल ओघके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल सौ पल्य पृथक्त्व प्रमाण है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। अनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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