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________________ सामित्तपरूवणा ६८. आभि०-सुद०-ओधि० घादि०४ अोघं । वेद०-णामा० जह० अणु० कस्स० ? अण्ण० चद्गदि० परियत्तमा मज्झिम आयु० जह० अणु० कस्स. ? अण्ण-पज्जत णिवत्तीए णिवत्तमाण० जह• अणु० वट्ट० । गोद० जह० अणु० कस्स०? चदुगदि० सागार जा० णिय उक्क०संकिलि• मिच्छत्ताभिमुह० जह• अणु० वट्ट । ६९. मणपज्ज. वे०-गोद० जह० अणु० कस्स० ? अण्ण सागार-जा०णिय० उक्क० संकिलि० असंजमाभिमुह० जह० वट्ट०। सेसं आभिणिभंगो । एवं संजदा० । णपरि गोद० मिच्छत्ताभिमुह । ७०. सामाइ०-छेदो० घादि०४ जह० अणु० कस्स० १ अण्ण. अणियट्टिखवग० । सेसं मणपज्जवभंगो । णवरि गो० मिच्छत्ताभिमुह० जह० वट्ट । ७१. परिहार० घादि०४ जह० अणु० कस्स० ? अण्ण० अप्पमत्तसंज. सागार. जा० सव्वविसु० । वेद०-आउ०णामा० जह० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० परिय० मज्झिम० जह. अणु० वट्ट० । गोद० जह० अणु० कस्स० १ अण्ण० पमत्त० सागारजा० णिय० उक्क० संकिलि० सामाइ०-छेदो० अभिमुह० ज० वट्ट० । ६८. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मों का भङ्ग ओघ के समान है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? अन्यतर चार गति का जीव परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला है। आय के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? जघन्य पर्याप्तनिवृत्तिसे निवर्तमान और जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्म के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संवलेशयुक्त, मिथ्यात्वके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। ६६. मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें वेदनीय और गोत्रकर्मके जघन्य अनभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, असंयमके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्धमें विद्यमान अन्यतर जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मोंका भङ्ग आभिनियोधिक ज्ञानी जीवोंके समान है। इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मके जघन्य अनभागबन्धका स्वामी मिथ्यात्वके अभिमुख जीव है। ७०. सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर अनिवृत्तिकरण क्षपक उक्त कर्मों के जघन्य अनभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मोंका भङ्ग मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मके जघन्य अनभागवन्धका स्वामी मिथ्यात्वके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्धमें विद्यमान उक्त जीव है। ७१. परिहारविशुद्ध संयत जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, और सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव उक्त कर्मोके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, आयु और नामकर्म के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्धमें विद्यमान अन्यतर जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, सामायिक और छेदोपस्थापना संयमके अभिमुख तथा जघन्य अनभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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