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महाणुभागबंधाहियारे
यत्तमाण० सम्मा० मिच्छा० ।
६३. इत्थि० पुरिस० वादि०४ जह० अणु० कस्स० १ अण्ण० खवग० अणियट्टि० चरिमे जह० अणु० वट्ट० । वेद०० - णामा० जह० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० तिगदि० परिय० जह० वट्ट० । आउ० ओघं । गोद० जह० अणु ० १ तिगदि ० मिच्छादि० परियत्त० जह० अणु० वट्ट० ।
६४. संग घादि०४ इत्थि० भंगो । वेद आउ० गोद० ओघं ।
(०- णामा० जह० अणु० तिगदि० ।
६५. अवगदवे० घादि०४ ओघं । वेद० णामा- गो० जह० अणुभा० कस्स ० १ अण्ण उवसम० परिषदमा० चरिमे जह० अणु० वट्ट० । ६६. कोध - माण मायासु घादि०४ णवुंसगभंगो । वेद०१०- णामा० जह० अणु० कस्स ० १ अण्ण० चदुगदि० परिय० जह० अणु - वट्ट० । आउ०- गोद० ओघं । ६७. मदि० - सुद० घादि०४ जह० अणु० कस्स० ? अण्ण० मणुस० सागारजा० सव्वविसु० संजमाभिमुह० चरिमे वट्ट० । सेसं ओघं । एवं विभंग ० - अब्भवसि ०मिच्छा० । णवरि अब्भवसि० दव्वसंज० ।
अनुभागबन्धका स्वामी परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला सम्यग्दपि या मिध्यादृष्टि जीव है ।
६३. स्त्रीवेदी और पुरुपवेदी जीवोंमें चार घातिकर्मो के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव उक्त कर्मो के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। वेदनीय और नामकर्मके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मका भङ्ग ओघ के समान है 1 गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तीन गतिका मिध्यादृष्टि जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है ।
६४. नपुंसकवेदी जीवों में चार घातिकर्मोका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । वेदनीय और नामकर्मके जन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त कर्मके जवन्य स्वामी है। आयु और गोत्रकर्मका भक्त के समान है । अनुभागवन्धका
६५, अपगतवेदी जीवोंमें चार वातिक्रमका भङ्ग ओके समान है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम जघन्य अनुभाग में अवस्थित अन्यतर गिरनेवाला उपशामक उक्त कर्मों के जधन्य अनुभागबन्धका स्वामी है ।
६६. क्रोध, मान और माया कषायवाले जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भङ्ग नपुंसकवेदी के समान है | वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्धमें विद्यमान अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आयु और गोत्रकर्मका भङ्ग श्रधके समान है।
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६७. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मो के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वेविशुद्ध, संयम के अभिमुख और अन्तिम जवन्य अनुभागबन्धमं अवस्थित अन्यतर मनुष्य उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मका भङ्ग ओघ के समान है। इसी प्रकार विभङ्गज्ञानी, अभव्य और मिध्यादृष्टि जीवांक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अभव्य जीवों में द्रव्यसंयत जीवोंके जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए।
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