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________________ महाबंध अणुभागबंधायारे ७२. सुहुमसंप० घादि ० ३ ओघं । णवरि वेद० णामा-गो० जह० अणु० १ परिवद ० जह० वट्ट० । ७३. संजदासंजदा० घादि ०४ जह० अणु० कस्स० १ अण्णद० मणुस० सम्मादि० सव्ववि० संजमाममुह० । वेद० णामा० - आउ० परिहारभंगो । गोद० जह० अणु० कस्स० ? अण्ण तिरिक्ख - मणुस ० सागार जा० णिय० उक्क० संकिलि० मिच्छत्ताभिमुह० जह० वट्ट० । २४ ७४. असंजदेसु घादि ०४ जह० सव्ववि० संजमाभिमुह० जह० वट्ट० अणु० कस्स० १ अण्ण० मणुस० सागार-जा० । सेसं ओघं । ७५. किण्णले० घादि०४ जह० अणु० कस्स ० १ अण्ण० णेरइ० सम्मादि० सव्वविसु० । वेद० णामा-गो० णिरयोघं । आउ० ओघं । एवं णील-काऊणं । णवरि गोद० जह० अणु० कस्स० ? अण्ण० बादरतेउ० - वाउ० जीवस्स सव्वाहि पज्ज० सागार - जा ० सव्ववसु० । णवरि णील० तप्पाऔग्गविसुद्ध ० । ७६. तेऊ घादि०४ जह० अणु० कस्स० १ अण्ण० अप्पमत्त० सव्वविसुद्धस्स । सेसं सोधम्मभंगो | एवं पम्माए वि । सुक्काए घादि०४ जह० अणु० कस्स ! ओघं । साणं आणदभंगो । ७२. सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें तीन घातिकर्मोंका भङ्ग ओघके समान है । इतनी विशे पता है कि वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? उप गिरनेवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । ७३. संयतासंयतों में चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध और संयम अभिमुख अन्यतर मनुष्य सम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और आयुकर्मका भङ्ग परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके समान है । गोत्रकर्मके जघन्य अनभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्धमें विद्यमान अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । ७४. असंयतों में चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार - जागृत, सर्वविशुद्ध, संयमके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर मनुष्य उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । शेष कर्मोंका भङ्ग धके समान है । ७५. कृष्णलेश्यामें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध अन्यतर नारकी सम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है । आयुकर्मका भङ्ग ओघ के समान है । इसी प्रकार नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मके जघन्य भागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार - जागृत और सर्वविशुद्ध अन्तर दायक और वायुकायिक जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । इतनी विशेषता है कि नीललेश्यामें तत्प्रायोग्य विशुद्ध जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । ७६. पीतलेश्यामें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव उक्त कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मोंका भङ्ग सौधर्म कल्पके समान है । इसी प्रकार पद्म लेश्यामें भी जानना चाहिये । शुक्ल लेश्या में चार घाति कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी ओघ के समान है । शेष कर्मोंका भङ्ग आनत कल्पके समान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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