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________________ अंतरपरूवणा ४११ अथिर-असुभ-अजस० ज० ज० ए०, उ० तेत्तीसं सादि०, दोहि अंतोमुहुत्तेहि सादिरेयं । अज० सादभंगो । इत्थि०-णस०-उज्जो० ज० अज० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० देसू० । पंचणोक०-ओरालि०--ओरालि० अंगो० ज० ज० ए०, उ० तेतीसं साग० देम् । अज० सादभंगो । दोआउ० मणजोगिभंगो। दोआउ० ज० ज० ए०, उ० अंतो० । अज० ज० ए०, उ० छम्मासं० देसू० । णिरय-देवगदि-चदुजादि-दोआणु०आदाव-थावरादि०४ ज. अज० [ज.] ए०, उ० अंतो० । तिरिक्ख०३ ज० ज० अंतो०, अज० ज० ए०, उ० दोण्णं पि तेत्तीसं० देसू० । मणुस०-मणुसाणु०-उच्चा० ज० ज० ए०, उ. बावीसं० सादि० अंतोमुहुत्तेण णिग्गदस्स । अज० ज० ए०, उ० तेंतीसं देसू० । पंचिं०-पर-उस्सा०-तस४ ज० ज० ए०, उ० तेतीसं साग सादि०, पविसंतस्स मुहुत्त । अज० ज० ए०, उ० अंतो०। वेउचि०वेउन्वि०अंगो० ज० ज० ए०, उ. अंतो० । अज० ज० ए०, उ० वधीसं० सा० । तेजा-क०-पसत्थ०४--अगु०-णिमि० ज० पंचिंदियभंगो। अज० ज० ए०, उ० बेस । असातावेदनीय, अस्थिर, अशुभ और अयश कीर्तिके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो अन्तमुहूर्त अधिक तेतीस सागर है। अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तर सातावेदनीयके समान है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और उद्योतके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है । पाँच नोकषाय, औदारिकशरीर और औदारिक आङ्गोपाङके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है । अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तर सातावेदनीयके समान है । दो आयुओंका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। दो आयुओंके जघन्य अनुभागबन्ध का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है। नरकगति, देवगति, चार जाति, दो आनुपूर्वी, आतप और स्थावर आदि चारके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्ध का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । तिर्यश्चगतित्रिकके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है, अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दोनोंका कुछ कम तेतीस सागर है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर निकलनेवाले जीवकी अपेक्षा अन्तमुहूर्त अधिक बाईस सागर है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। पञ्चन्द्रियजाति, परघात, उच्छवास और सचतुष्कके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त अधिक तेतीस सागर है। यह प्रवेश करनेवाले जीवके एक अन्तमुहूर्त अधिक होता है । अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्त । वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकाङ्गोपाङ्गके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक बाईस सागर है। तंजसशरीर, कामणशरार, प्रशस्त वणचतुष्क, १. ता० प्रा० प्रत्योः साग० सादिदेसू० इति पाठः। २. ता० पा प्रत्योः सादि० दे० पंचि. संतस्स मुहर्ग इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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