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________________ अंतरपरूवणा ३६३ ६०६. वेउव्वियका० पंचणा०-छदसणा०-बारसक०-भय-दु०-ओरालि-तेजा०क०-पसत्थापसत्थवण्ण४-अगु०-बादर-पज्जत्त-पत्ते-णिमि०-तित्थय०-पंचंत० ज० ज० ए०, उ० अंतो०। अज० ज० ए०, उ० बेसम०। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबं०४ ज. अज० णत्थि अंतरं। पुरिस०-हस्स-रदि० ज० अज० ज० ए०, उ. अंतो० । तिरिक्व०३ ज० णत्थि अंतरं । अज ० ज० ए०, उ० अंतो० । दोआउ० मणजोगिमंगो। सेसाणं ज. अज० ज० ए०, उ० अंतो०। ६१०. वेउव्वियमि० पंचणाणावरणादिधुवियाणं तित्थ० ज० अज. पत्थि अंतरं । पुरिस०-हस्स-रदि-तिरिक्खगदि३-पंचिंदि०-ओरालि० अंगो०-आदाउज्जोवतस-णीचा० ज० णत्थि अंतरं। अज० ज० ए०, उ० अंतो० । सेसाणं सादादीणं ज० अ० ज० ए०, उ० अंतो० । ६०६. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तर नहीं है । पुरुषवेद, हस्य और रतिके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। तिर्यश्चगतित्रिकके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तर नहीं है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। दो आयुओंका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। विशेषार्ष--वैक्रियिककाययोगका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इसलिए यहाँ पाँच ज्ञानावरणादिके जघन्य अनुभागबन्धका उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्तं कहा है। स्त्यानगृद्धि तीन आदिका सम्यक्त्वके अभिमुख होने पर तिर्यश्चगतित्रिकका नारकीके सम्यक्त्वके अभिमुख होने पर जघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके अन्तरका निषेध किया है। पुरुषवेद, हास्य और रतिका यद्यपि सर्वविशुद्ध सम्यग्दृष्टि देव और नारकीके जघन्य अनुभागबन्ध होता है,पर इनका जघन्य अनुभागबन्ध एक समयके अन्तरसे भी सम्भव है, इसलिए इनके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूत कहा है। दो आयुका स्पष्टीकरण मनोयोगियोंके समान कर लेना चाहिए। शेष प्रकृतियाँ अनवबन्धिनी हैं यह स्पष्ट ही है, अतः इनके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है। ६१०. वैक्रियिकमिश्रकायोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणादि ध्रुवबन्धवाली और तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। पुरुषवेद, हास्य, रति, तिर्यश्वगतित्रिक, पञ्चन्द्रियजाति, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, आतप, उद्योत, स और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। शेष सातावेदनीय आदिके जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्धका 1. भा. प्रतौ सादादीणं प्रजा इति पाठः। ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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