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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ४१. सुक्काए घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण. देवस्स उक्क. संकिलि० उक० वट्ट० । सेसाणं ओघं । ४२. अब्भवसि०-मिच्छा० मदिभंगो। णवरि अब्भवसि० वेद-णामा-गो० उक्क० अणुमा० कस्स० ? अण्ण० चदुगदि० सण्णि० पंचिंदि० सागार-जा० सव्वविसु० उक्क० वट्ट० । अहवा मणुसस्स दव्वसंजदस्स कादव्वं । ४३. वेदगे० धादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० चदुगदि० असंज. सागार-जा० उक० मिच्छत्ताभिमुहस्स उक्क ० अणु० वट्ट० । सेसं परिहारभंगो। ४४. खइगे घादि०४ उक० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० चदुगदि० असंज० सागार-जा० णिय० उक्क० संकिलि० उक्क० वट्ट० । सेसं ओघं। ४५, उवसम० घादि०४ उक्क० अणु० कस्स० ? अण्ण० चदुगदि० असंज० सागार-जा० णिय० उक्क० संकिलि० मिच्छत्ताभिमुह० उक्क० वट्ट । वेद०-णामा-गो० उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण, उवसमसुंहुमसंप० चरिमे उक्क० वट्ट । ४६. सासणे धादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० चदुगदि० सागार ४१. शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट संतशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर देव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । शेष कर्मोंका भंग ओघके समान है। ४२. अभव्यों और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि अभव्योंमें वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, पंचेन्द्रिय, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है अथवा द्रव्यसंयत मनुष्य उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। ४३. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्वके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मोंका भंग परिहारविशुद्धि संयत जीवोंके समान है। ४४. क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मोंका भंग ओघके समान है। ४५. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागत. नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्वके अभिमख और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर उपशामक, सूक्ष्मसांपरायिक जीव उक्त कर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। ४६. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मोके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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