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सामित्तपरुवणा
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णामा-गो० उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० मणुस० सागार-जा० सव्वविसुद्ध ० संजमाभिमुह० चरिमे उक्क० चट्ट० । आउ० उक्क० अणुभा० कस्स ० १ अण्ण० तिरिक्खमाणुस ० तप्पा ओग्गविसु ० उक्त० वट्ट० ।
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३६. किण्णले० घादि ०
३८. असंज० घादि०४ मदि० भंगो । वेद० णामा- गो० उक० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० मणुस ० असंजद सम्मादि० संजमाभिमुह० उक्क० वट्ट० । आयु० मदि० भंगो उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० तिगदियस्स सागार - जा ० णियमा उक्क० संकिलि० उक्क० वट्ट० । वेद-णामा-गो० उक० अणुभा० कस्स ० १ अण्ण० पोरइयस्स असंजदसम्मा० सव्वविसुद्ध उक्क० वट्ट० । आयु० उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० तिरिक्ख- मणुस० मिच्छादि० सागार-जागार० तप्पाऑग्गसंकिलिट्ठ० उक्क० वट्ट० । एवं णील-काऊणं । णवरि णेरइयस्स कादव्वं ।
४०. तेऊ घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० देवस्स मिच्छादि० सागार-जा० णिय० उक्क० संकिलि० उक्क० वट्ट० । वेद-णामा-गो० परिहारभंगो । आउ० ओघं । एवं पम्माए । णवरि घादीणं सहस्सारभंगो ।
अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्वविशुद्ध, संयम अभिमुख और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागन्धमें अवस्थित अन्यतर मनुष्य उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यन और मनुष्य आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है।
३८. असंयतों में चार घाति कर्मोंका भंग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संयमके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मनुष्य असंयत सम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। श्रयुकर्मका भंग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है ।
३६. कृष्णलेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जायत, तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर तिर्य और मनुष्य मिध्यादृष्टि जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता हैं कि यहाँ नारकी के उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करना चाहिए ।
४०. पीतलेश्यावाले जीवोंमें चार घातिकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव
दृष्टि जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मका भंग परिहारविशुद्धि संगत जीवों के समान है। आयु कर्मका भंग ओघ के समान है । इसीप्रकार पद्मलेश्यावाले जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें चार घातिकर्माका भंग सहस्रार कल्पके समान हैं ।
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