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________________ सामित्तपरूवणा जा० णिय० उक्क० संकिलि० मिच्छत्ताभिमुह० उक्क० वट्ट० । वेद०-णामा-गो० उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० चदुगदि० सागार-जागा. णिय० सव्वविसु० । आउ० उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० मणुस० सागार-जा. तप्पाओग्गविसु० उक्क० वट्ट० । ४७. सम्मामिच्छा० घादि० ४ उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० चद्गदि० सागार-जा० णिय० उक० मिच्छत्ताभिमु० उक्क० वट्ट० । वेद०-णामा-गो० उक० अणुभा० कस्स० ? अण्णद० चदुगदि० सागार-जागार० सव्वविसुद्ध० सम्मत्ताभिमु० उक्क० वट्ट० । ४८. असण्णीसु घादि०४ उक० अणुभा० कस्स० १ पंचिंदि० पजत्त० सागार० णिय० उक्क० संकिलि० उक्क० अणुभा० वट्ट० । वेद०-णामा-गो० उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० पंचिंदि० पजत्त० सागा० सव्वविसु० उक० अणु० वट्ट० । आउ० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्णद० पंचिंदि० पजत्त० तप्पाओग्गसंकिलि० उक्क० वट्ट । [ अणाहार कम्मइ० । ] एवं उकस्सं समत्तं ।। ४६. जहण्णए पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० णाणा०-दंसणा०-अंतरा० जहण्णओ अणुभागबंधो कस्स० ? अण्णदरस्स खवगस्स सुहुमसंपराइगस्स चरिमे साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्वके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और नियमसे सर्वविशुद्ध अन्यतर घार गतिका जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर मनुष्य आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। ४७ सम्यमिथ्यादृष्टि जीवोंमें चार घाति कर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट मिथ्यात्वके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभाग बन्धमें अवस्थित अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, सम्यत्वके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभाग बन्धम अवस्थित अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कमांक उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है। ४८. असंज्ञी जीवोंमें चार घाति कर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभाग बन्धमें अवस्थित अन्यतर पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव उक्त कांके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। अनाहारक जीवोंका भङ्ग कार्मणकाययोगी जीवोंके समान है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्त्व समाप्त हुआ। ४६. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर क्षपक सूक्ष्मसांपरायिक जीव उक्त कर्मोंके जघन्य अनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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