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________________ १ सामित्तपरूवणा ११ euro बादर • तप्पाऔग्गविसु० उक० वट्ट० । एवं बादर-पजत्तापञ्जत्ताणं सुहुमाणं पि दव्वं । २४. ओरालियम० घादि०४ उक्क० अणु० कस्स ० १ अण्ण० पंचिंदि० सणिमिच्छा० तिरिक्ख० मणुसस्स वा सागार-जा० णियमा उक्कस्सअणुभा० वट्ट० । वेदणी०णामा-गो० ० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस सम्मादि० सव्वविसु ० उक्क० वट्ट० | आयु० उक० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० पंचिंदि० सण्णि० मिच्छा० तिरिक्ख मणुस ० सागारजा० तप्पाऔगवि उक्क० वट्ट० । O ว २५. वेउव्वयका० घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० १ देवस्स वा णेरइयस्स वामिच्छादि ० सागार - जागा० णियमा उक्क० संकिलि० उक्क० वट्ट० । वेदणी०णामा- गो० उक्क० अणुभा० कस्स० ? देव० णेरइ० सम्मादि० सागार-जा० णियमा सव्वविसु० उक्क० वट्ट० । आयु० उक्क० अणुभा० कस्स० : अण्ण० देव० णेरइ० सम्मादि० सागार-जा० तप्पाओग्गविसु० उक्क० वट्ट० । एवं वेडव्वियमि० । आयु० णत्थि | raft वेदणी ० -णामा-गो० उक० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० उवसमणादो परिवदस्स पढमसमए देवस्स । 1 अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित श्रन्यतर बादर उक्त जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धके स्वामी हैं। इसी प्रकार इनके बादर, बादरपर्याप्त बादर अपर्याप्त और सब सूक्ष्म जीवोंके भी जानना चाहिए । २४. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, मिध्यादृष्टि, तिर्यञ्ज या मनुष्य, साकार जागृत और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पञ्चेन्द्रिय उक्त जीव चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सम्यग्दृष्टि, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । श्रयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, मिध्यादृष्टि, तिर्यञ्च या मनुष्य, साकार - जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पञ्चेन्द्रिय उक्त जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । २५. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें चार घातिकमके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन हैं ? साकार जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर देव या arrat मिध्यादृष्टि जीव उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, नियमसे सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवों में जानना चाहिए । परन्तु इनके कर्मका बन्ध नहीं होता । तथा इतनी विशेषता है कि इनके वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणिसे गिरकर प्रथम समय में देव हुआ अन्यतर जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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