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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे बादर० सागार-जा० तप्पाऑग्गवि० उक्क० वट्ट० । गोद० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० बादरपुढ०-आउ०-वणप्फदि० सव्वाहि पजत्तीहि पज्जत्त० सागार-जा० सव्वविसु० उक्क० वट्ट० । एवं बादर-बादरपज्जत्त०-चादरअपज्ज०-सुहमपञ्जत्तापजत्ताणं ।
२२. पुढवि०-आउ०-वणप्फदिपत्ते०-णिगोद० घादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स ? अण्ण० चादर० सव्वाहि प० सागा०-जा० णियमा उक्क० संकिलि० उक्क० वट्ट० । वेदणी०-णामा-गो० उक्क० अणु० कस्स० १ अण्ण० बादर० सागार-जा. सव्वविसुद्ध० उक० वट्ट० । आयु० उक्क० अणुभा० कस्स० १ बादरस्स तप्पाओग्गविसु० उक्क० वट्ट० । एवं वादरपजत्तापजत्ताणं सव्वसुहुमाणं पि। णवरि यं यं उद्दिस्सदि तस्स णामगहणं' कादव्वं ।
२३. तेउ०-वाउ० धादि०४ गोदस्स च उक्क० अणु० कस्स० ? बादर० सव्वाहि. सागार-जा० णियमा उक्क० संकिलि० । वेदणी०-णामा० उक्क० अणुभा० कस्स ? अण्ण. बादर० सागार-जा० सव्वविसु० उक्क० अणुभा० वट्ट० । आयु० उक्क० अणुभा० कस्स ? विशुद्ध और उत्कृष्ट अनभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर एकेन्द्रिय जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनभागवन्धका स्वामी है । गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर वादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और वादर वनस्पतिकायिक जीव गोत्र कर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार वादर एकेन्द्रिय, बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय, बादर अपर्याप्त एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-एकेन्द्रियोंमें उच्च गोत्रका बन्ध अग्निकायिक, वायुकायिक जीवोंके नहीं होता, इसलिए गोत्र कर्मके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी इनको छोड़कर शेष तीन बादरकायवाले जीवोंके कहा है।
___ २२. पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और निगोद जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर जीव चार घातिकर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। आयु कर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार इनके बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त और सव सूक्ष्म जीवोंके भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है जिस जिसका उद्देश्य हो, वहाँ उसका नाम ग्रहण करके स्वामित्व प्राप्त करना चाहिए।
___ २३. अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में चार घातिकर्मों और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त उक्त धादर जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धके स्वामी हैं। वेदनीय और नामकर्मके उत्कृष्ट अनुभागवन्धके स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर उक्त जीव उक्त दोनों कर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धके स्वामी हैं। आयुकर्मके उत्कृष्ट
१ मूलप्रती-गहणं ण कादव्वं इति पाठः ।
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