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________________ सामित्तपरूवणा सण्णि-मिच्छादि० सव्वाहि पजत्तीहिं. सागार-जागार० तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स उक० अणुभा० वट्ट० । एवं पंचिंदियतिरिक्ख०३ । १८. पंचिंदि०तिरिक्खअप० घादि०४ उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० सण्णि. सागा०-जागा० उकस्ससंकिलि० उक० अणुभा० वट्ट० । वेद०-णामा-गो० उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० सण्णि० सागार-जागार० सव्वविसु० उक० अणुभा० वट्ट०। आयु० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० सण्णि. सागार-जागार० तप्पाऑग्गविसुद्धस्स उक्क० अणुभा० वट्टः । एवं मणुसअपज्ज०-सव्वविगलिंदि०-पंचिंदियतसअपज । णवरि विगलिदिएसु अण्णदरेसु पजत्तग त्ति भाणिदव्वं । १६. मणुस०३ ओघभंगो। णवरि घादीणं उक्कस्सओ अणुभा० कस्स० ? अण्ण. मिच्छादि० सागार-जा० उक्क० संकिलेस० उक्क अणुभा० वट्ट। २०. देवाणं याव उवरिमगेवजा ति णेरइगभंगो। अणुदिस याव सव्वट्ठा त्ति धादि०४ उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० सागार-जा० उक्क० संकिलि० उक्क० अणुभा० वट्ट० । सेसं देवोघं ।। २१. एइंदियाणं धादि०४ उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० बादरएइंदि० सव्वाहि प० सागार-जा० णियमा उक० संकिंलि० उक्क० वट्ट० । वेद०-णामा० उक्क० ? बादरएइंदि० सव्वाहि प० सागा०-जा० सव्वविसु० उक० वट्ट० । आयु० उक्क० अणुभा०? उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकके जानना चाहिये । १८. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागत उत्कृष्ट संलश युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर संज्ञी जीव चार घाति कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर जीव उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, साकार-जागृत, तत्प्रायोग्यविशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सब विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और बस अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि विकलेन्द्रियोंमें अन्यतर पर्याप्तक जीवोंके उत्कृष्ट स्वामित्व कहना चाहिये। १६. मनुष्यत्रिकमें ओषके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर मिथ्याप्टि जीव घातिकमाके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है। २०. सामान्य देवोंसे लेकर उवरिम |वेयक तकके देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें चार घातिकर्मके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर जीव चार घातिकों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । शेप स्वामित्व सामान्य देवोंके समान है। २१. एकेन्श्यिाम चार घातिकर्मोके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर एन्द्रिय जीव चार घातिकाँके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । वंदनीय और नाम कर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृन, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर एकेन्द्रिय जीव उक्त दोनों कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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