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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे संजदस्स सागार-जागार० तप्पाओग्गविसुद्धस्स उक्क. अणुभागबंधे वट्टमाणस्स । एवं ओघभंगो पंचिंदिय-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि-ओरालि०-लोभक०-चक्खु०अचक्खु०-भवसि०-सण्णि-आहारग त्ति ।
१६. आदेसेण णिरयगदीए घादीणं उक्क० अणुभाग० कस्स० ? अण्ण० मिच्छादि० सव्वाहि पञ्ज. सागार-जागार० संकिलि० उक्क० अणुभा० वट्टमाण। वेदणीणामा-गो० उक्क० अणुभाग० कस्स० ? अण्णद० सम्मादि० सागार-जागार० सव्वविसुद्धस्स उक० अणुभा० वट्ट० । आयुग० उक्क० अणुभाग० कस्स० १ अण्णद० सम्मादि० सागार-जागार० तप्पाओग्गविसुद्धस्स उक्क० अणुभा० वट्ट० । एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि सत्तमाए आयु० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० मिच्छादि० सव्वाहि पज० सागार-जागार० तप्पाओग्गविसुद्ध० उक्क० अणुभा० वट्ट।
१७. तिरिक्खेसु घादीणं उक० अणुभा० कस्स० ? अण्ण० पंचिंदि० सणि मिच्छादि० सव्वाहि पन्ज. सागार-जागा० सव्वसंकिलिट्ठस्स० उक्क० अणुभा० वट्ट० । वेद०-णामा-गोद० उक्क० अणुभा० कस्स० ? अण्णद० संजदासंजद० सागा०-जागा. सव्वविसुद्धस्स उक्क० अणुभा० वट्ट० । आयु० उक्क० अणुभाग० कस्स० ? अण्ण० पंचिं० विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अप्रमत्त संयत जीव आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार ओघके समान पञ्चेन्द्रिय, पश्वेन्द्रय पर्याप्त, त्रस, त्रस पर्याप्त, पाँचमनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, लोभकषायवाले चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-इन मार्गणाओंमें चारों गतियों और दश गुणस्थानोंकी प्राप्ति सम्भव होनेसे ओघ प्ररूपणा बन जाती है।
१६. आदेशसे नरकगतिमें घातिकर्मोके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार जागृत संलशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी घाति कर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग बन्धमें अवस्थित अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त तीन कर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत तत्प्रायोग्रविशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी हैं। इसीप्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? सव पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार जागृत तत्प्रायोग्य विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर मिथ्यादृष्टि आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है।
१७. तिर्यश्चोंमें घातिकमोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी मिध्यादृष्टि, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार जागृत सर्वसंक्शयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर पवेन्द्रिय तिर्यश्च घातिकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। वेदनीय नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, सर्व विशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर संयतासंयत तिर्यश्च उक्त कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? संज्ञी, मिथ्यादृष्टि सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार जागृत तत्प्रायोग्य संलश युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च श्रायुकर्मके
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