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________________ अंतरपरूवणा ३२१ पंचिंदि०-समचदु०-पर० उस्सा०-पसत्थ०-तस०४-थिरादिछ० उ० ज० एग०, उक्क० अद्धपोग्गल । अणु० ओघं । असादा०--पंचणोक०-अथिर--असुभ--अजस० उक० अणु० ओघं । अपञ्चक्खाणा०४–णस०--तिरिक्ख०--चदुजा०-ओरालि०-पंचसंग.ओरालि०अंगो०--छस्संघ०--तिरिक्खाणु०-आदाउज्जो०--अप्पसत्थवि०-थावरादि०४दूभग-दुस्सर-अणादें-णीचा० उ० ओघं । अणु० ज० एग०, उ० पुव्वकोडी देसू० । तिण्णिआयु० उ० अणु० ज० एग०, उक. पुवकोडितिभागं देसू० । तिरिक्खायु० उक्क० ओघं । अणु० ज० एग०, उक्क० पुन्चकोडी सादि० । णिरय०--णिरयाणु० उ० अणु० ओघं। मणुस०-मणुसाणु० उ० ज० एग०, उ० अणंतका० । अणु० ओघं । देवगदि०४ उ० ज० एग०, उ० अद्धपोग्गल० । अणु० ओघं । उच्चा० उ० ज० एग०, उक्क० अद्धपोग्गलं० । अणु० ओघं । तेजा०-क०-पसत्थ०४-अगु०-णिमि० अ० ज० [ एग०, उ० अद्धपोग्गल० । अणु० ज० एग० ] उ० बेसम० । समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है । सातावेदनीय, पञ्चन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छहके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओके समान है । असातावेदनीय, पाँच नोकषाय, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्तिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघके समान है। अप्रत्याख्यानावरण चार, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, चार जाति, औदारिकशरीर, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर आदि चार, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। तीन आयके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एक पूर्वकोटिका कुछ कम विभाग प्रमाण है। तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओषके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि है। नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघके समान है। मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघके समान है। देवगति चतुष्कके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघके समान है। उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गलपरिवर्तन है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ओघके समान है । तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु और निर्माणके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। २. ता. प्रतौ उ० ज० ए० उ०, प्रा. प्रतौ उ० १. ता. प्रतौ उच्चा० श्रद्धपोग्ग० इति पाटः। ज० उ० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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