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________________ कालपरूवणा २८६ मणुसगदि--पंचजादि--छस्संठा०--छस्संघ० -- मणुसाणु० -- दोविहा० - तसथावरादिदसयुग०-उच्चा० ज० ज० एग०, उक्क० चत्तारिसम० । अज० अणु०भंगो । इत्थि०-णवूस०अरदि--सोग-ओरालि०अंगो०-[पर०-उस्सा०-]आदाउज्जो० ज० ज० एग०, उक्क० बेसम० । अज० अणु०भंगो। तिरिक्व०३ ज० ज० उ० एग० । अज० ज० एग०, उ० अंतो। ५२६. वेउव्वियका. पंचणा०--छदंसणा०-बारसक०--णवणोक०--पंचिंदि०ओरालि०--तेजा०-क..-ओरालि०अंगो०--पसत्थापसत्थव०४-आदाउज्जो०--तस०४णिमि०--तित्थ०--पंचंत० ज० ज० एग०, उ० बेसम० । अज० अणुभंगो। थीण गति, पाँच जाति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, स-स्थावर आदि दस युगल और उच्चगोत्र के जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है । अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, परघात, उच्छ्वास, आतप और उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है। तिर्यश्चगतित्रिकके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। विशेषार्थ-प्रथम दण्डकमें कही गई अप्रशस्त प्रकृतियोंका सर्वविशुद्ध परिणामोंसे और प्रशस्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट संक्लेश परिणामोंसे, शरीरपर्याप्ति अगले समयमें ग्रहण करनेवाला है ऐसे जीवके, यथायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिये इनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। जिनके उनका जघन्य अनुभागबन्ध होता है,उनके एक समय कम अन्तमुहूते काल तक और जिनके उनका जघन्य अनुभागबन्ध नहीं होता,उनके पूरे अन्तमुहूर्त काल तक इनका अजघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उष्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है। दो आयुको छोड़कर सातावेदनीय आदि सप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनके अजघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान बन जाता है ,यह स्पष्ट ही है । इसी प्रकार स्त्रीवेद आदिके कालका स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए । तिर्यश्चगतित्रिकका जघन्य अनुभागवन्ध बादर अग्निकायिक व वायकायिक जीवके शरीरपर्याप्तिके ग्रहण करनेके एक समय पूर्व होता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा ये सप्रतिपक्ष प्रकृतियाँ हैं, इसलिए यहाँ इनके अजघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त होता है यह स्पष्ट ही है। __५२६. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, नौ नोकषाय, पश्चन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, आतप, उद्योत, त्रसचतुष्क, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय १. ता० प्रती पंचजादि छस्संघ० इति पाठः । २. ता० प्रतौ तिरिक्ख०३ ज.ज.ए.उ. अंतो०, श्रा० प्रतौ तिरिक्ख०३ ज. ज. एग० । अज० ज० एग• अंतो• इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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