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________________ ' सादि-अणादि-धुव-अद्भुवबंधपण ५ वा अण्णबंधो वा । सव्वजहण्णयं अणुभागं बंधमाणस्स जहण्णबंधो । तदो उवरि बंधमाणस्स अहणबंधो। एवं सत्तणं कम्माणं । एवं अणाहारग चि णेदव्वं । ८-११ सादि- अणादि-धुव-अद्भुवबंधपरूवणा ११. यो सो सादिबंधो अणादिबंधो धुवबंधो अद्भुवबंधो णाम तस्स इमो णिसोओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण चदुष्णं घादीणं उकस्सबंधो अणुक्कस्सबंधो जहण्णबंधो किं सादिबंधो अणादिबंधो धुवबंधो अद्भुवबंधो ? सादिय-अद्भुवबंधो । अजहण्णबंधो किं सादि ० ४ १ सादियबंधो वा अणादियबंधो वा धुवबंधो वा अद्भुवबंधो वा । वेदणीय-गामाणं उक्कस्स० जहण्ण॰ अजहण्ण॰_ किं सादि० अणादि० धुव० अद्भुव० १ सादिय० - अद्भुवबंधो । अणुकस्सबंधो किं० सादि० ४१ सादियबंधो वा अणादियबंधो वा धुवबंधो वा अद्भुवबंधो वा | गोदस्स उकस्सबंधो जहण्णबंधो किं सादि० ४ १ सादिय-अद्भुवबंधो । अणुक्कस्सबंधो अजहण्णबंधो किं सादि० ४ १ सादिबंधो अणादियबंधो धुवबंधो अद्भुवबंधो। ] आयु० उक्क० अणु० जह० अज० किं सादि ० ४ १ सादिय- अद्भुव० । एवं ओघभंगो मदि०सुद० - असंज० - अचक्खुदं० - भवसि ० - मिच्छादि ० | णवरि भवसिद्धिए धुवबंधो णत्थि । सेसाणं सादिय -अद्भुव० । एवं याव अणाहारग त्ति दव्वं । I जघन्यबन्ध भी होता है और अजघन्यबन्ध भी होता है । सबसे जघन्य अनुभागको बाँधता है, इसलिए जघन्यबन्ध होता है और उससे अधिक अनुभागको बाँधता है, इसलिए अजघन्यबन्ध होता है। इसी प्रकार सातों कर्मोंके विषयमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । ८-११ सादि-अनादि- ध्रुव-अध्रुवबन्धप्ररूपणा ११. जो सादिबन्ध, अनादिबन्ध, ध्रुवबन्ध और अधुंबबन्ध है, उसका यह निर्देश है - ओघ और आदेश | ओघसे चार घाति कर्मोंका उत्कृष्टबन्ध, अनुत्कृष्ट और जघन्यबन्ध क्या सादिबन्ध है, क्या अनादिबन्ध है, क्या ध्रुवबन्ध है या क्या अध्रुवबन्ध है ? सादिबन्ध है और अध्रुवबन्ध है । अजघन्यबन्ध क्या सादिबन्ध है, क्या अनादिबन्ध है, क्या ध्रुवबन्ध है या क्या अध्रुवबन्ध है ? सादिबन्ध है, अनादिबन्ध है, ध्रुवबन्ध है और अध्रुवबन्ध है । वेदनीय और नामकर्मका उत्कृष्टबन्ध जघन्यबन्ध और अजघन्यबन्ध क्या सादिबन्ध है, क्या अनादिवन्ध है, क्या ध्रुवबन्ध है या क्या अन्ध है ? सादिबन्ध है और अध्रुवबन्ध है । अनुत्कृष्टबन्ध क्या सादिबन्ध है, क्या अनादिबन्ध है या क्या अध्रुवबन्ध है ? सादिबन्ध है, अनादिबन्ध है, ध्रुवबन्ध है और अध्रुवबन्ध है । गोत्रकर्मका उत्कृष्टबन्ध और जघन्यबन्ध क्या सादिबन्ध है, क्या अनादिबन्ध है, क्या ध्रुवबन्ध है या क्या अध्रुवबन्ध है ? सादिबन्ध है और अध्रुवबन्ध है । अनुत्कृष्टबन्ध और अन्यबन्धक्या सादिबन्ध है, क्या अनादिबन्ध है, ? क्या ध्रुवबन्ध है या क्या अध्रुवबन्ध है ? सादिवन्ध है, अनादिबन्ध है, ध्रुवबन्ध है और अध्रुवबन्ध है । आयुकर्मका उत्कृष्टवन्ध, अनुत्कृष्टबन्ध, जघन्यवन्ध और अजघन्यबन्ध क्या सादिबन्ध है, क्या अनादिवन्ध है, क्या ध्रुवबन्ध है या क्या अध्रुवबन्ध है ? सादिबन्ध है और अध्रुवबन्ध है । इसी प्रकार ओधके समान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी असंयत, दर्शनी, भव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि भव्यजीवोंमें ध्रुवबन्ध नहीं होता है। शेष मार्गणाओंमें सादि और अध्रुवबन्ध होता है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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