SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाणुभागबंधाहियारे २- ३ सव्व-गोसव्वबंधपरूवणा ८. यो सव्वबंधो णोसव्वबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण णाणावरणीयस्स अणुभागबंधी किं सव्वबंधो गोसव्वबंधो ? सव्वबंधो वा गोसव्वबंधो वा । सव्वे अणुभागे बंधदि ति सव्वबंधो। तदो ऊणियं अणुभागं बंधदित्ति गोसव्वबंधों । एवं सत्तणं कम्माणं । एवं अणाहारग ति दव्वं । ४ ४-५ उक्कस्स-अणुक्कस्सबंधपरूवणा ६. यो सो उकस्सबंधो अणुक्कस्सबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण णाणावरणीयस्स अणुभागबंधो किं उक्कस्सबंधो अणुकस्सबंधो ? उक्कस्सबंधो वा अणुकरसबंधो वा । सव्वुक्कस्सियं अणुभागं बंधदि ति उकस्सबंधी । तदो ऊणियं बंधदि चि अणुकरसबंध । एवं सत्तण्णं कम्माणं । एवं अणाहारगति दव्वं । ६-७ जहण्ण- अजहण्णबंधपरूवणा १०. यो सो जहण्णबंधो अजहण्णबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण णाणावरणीयस्स अणुभागबंधो किं जहण्णबंधो अजहण्णबंधो ? जहण्णबंधो विशेषार्थ - घातिकर्मोमें चतुःस्थानीयसे लता, दारु, अस्थि और शैलरूप, त्रिस्थानीयसे लता, दारु, और अस्थिरूप, द्विस्थानीयसे लता और दारुरूप और एकस्थानीयसे केवल लतारूप अनुभाग लिया गया है । अघातिकमोंमें अनुभाग दो प्रकारका है— प्रशस्त और अप्रशस्त । प्रशस्त अनुभाग गुड, खाँड, शर्करा और अमृतोपम माना गया है । तथा अप्रशस्त अनुभाग नीम, काँजी, विष और हलाहल समान माना गया है । चतुःस्थानीयमें यह चारों प्रकारका, त्रिस्थानीयमें अमृत और हलाहलको छोड़कर शेष तीन तीन प्रकारका और द्विस्थानीयमें गुड और खाँडरूप या नीम और काँजीरूप अनुभाग लिया गया है । २-३ सर्वबन्ध- नोसर्वबन्धप्ररूपणा ८. जो सर्वबन्ध और नोसर्वबन्ध है उसका यह निर्देश है— ओघ और आदेश ओघसं ज्ञानावरणीय कर्मका अनुभागबन्ध क्या सर्वबन्ध होता है या बोसर्वबन्ध होता है ? सर्वबन्ध भी होता सर्वबन्ध भी होता है । सब अनुभागका बन्ध होता है, इसलिए सर्वबन्ध होता है । और उससे न्यून अनुभागका बन्ध होता है, इसलिए नोसर्वबन्ध होता है । इसी प्रकार सातों कमों के विषय में जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । ४-५ उत्कृष्टबन्ध - अनुत्कृष्टबन्धप्ररूपणा ६. जो उत्कृष्टबन्ध और अनुत्कृष्टबन्ध है उसका यह निर्देश है - ओघ और आदेश | ओघसे ज्ञानावरणीय कर्मका अनुभागबन्ध क्या उत्कृष्टबन्ध होता है या अनुत्कृष्टबन्ध होता है । सर्वोत्कृष्ट भागो बाँधता है, इसलिए उत्कृष्टबन्ध होता है और उससे न्यून अनुभागको बाँधता है, इसलिए अनुत्कृष्टबन्ध होता है। इसी प्रकार सात कर्मों के विषयमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६-७ जघन्यबन्ध - अजघन्यबन्धप्ररूपणा १०. जो जघन्यबन्ध और अजघन्यबन्ध है, उसका यह निर्देश है - ओव और आदेश ! ओ से ज्ञानावरणीयकर्मका अनुभागबन्ध क्या जघन्यबन्ध होता है या अजघन्यबन्ध होता है ! For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy