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________________ २५८ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे एग०, उक्क० अंतो० । सेसाणं मणजोगिभंगो॥ ४६६. मदि०-मुद० पंचणाणावरणादिपढमदंडओ सादादिविदियदंडओ तिरिक्खगदितिगं च ओघं ! असादा-सत्तणोक०-चदुआयु०--णिरयगदि-चदुजादि-पंचसंठा०पंचसंघ०-णिरयाणु०--आदाव०--अप्पसत्थवि०-थावरादि०४-अथिरादिछ० उ० ज० एग०, उक्क० बेसम० । अणु० ज० एग०, उक्क० अंतो० । एवं उज्जोवं वज्जरिस० । णवरि उक्क० एग० । मणुस०-मणुसाणु० उक्क० एग० । अणु० ज० एग०, उक्क० एकतीसं० सादि० । देवगदि४-समचदु०-पसत्यवि०--सुभग-सुस्सर-आदें०-उच्चा० उक्क० एग० । अणु० ज० एग०, उक्क० तिण्णि पलि० देसू० । पंचिं०-ओरालि अंगो०पर०--उस्सा०-तस०४ उक्क० एग. ! अणु० ज० ए०, उक्क० तेत्तीसं० सादि० । अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। विशेषार्थ-मनोयोमी जीवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जो जघन्य और उत्कृष्ट काल घटित करके बतला आये हैं,वह क्रोधादि चार कषायवाले जीवोंमें भी बन जाता है। फिर भी यहाँ पर तैजसशरीर आदि कुछ प्रकृतियोंका अलगसे उल्लेख कर जो उनका काल कहा है सो प्रकारका दिग्दर्शन कराना मात्र उसका प्रयोजन है। तात्पर्य यह है कि जो क्षपक प्रकृतियाँ हैं,उनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ठ काल एक समय तथा अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त जैसा मनोयोगियोंके कहा है, वैसे ही यहाँ भी जानना चाहिए। तथा शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय तथा अनुत्कृष्ठ अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त मनोयोगी जीवोंके समान यहाँ भी होता है, कारण कि चारों कषायोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त होता है। तथा क्षपकश्रेणिमें भी चारों कयायोंका सद्भाव पाया जाता है। मात्र स्वामित्वकी अपेक्षा जहाँ जो विशेषता आती है, उसे जान कर यह काल घटित करना चाहिए। ४६६. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणादि प्रथम दण्डक, सातावेदनीय आदि द्वितीय दण्डक और तिर्यश्चगतित्रिकका भङ्ग ओघके समान है। असातावेदनीय, सात नोकषाय, चार आयु, नरकगति, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, नरकगत्यानुपूर्वी, आतप, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर प्रादि चार और अस्थिर आदि छहके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। इसी प्रकार उद्योत और वर्षभनाराचसंहननके विषयमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर है । देवगतिचतुष्क, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है। पञ्चन्द्रिय जाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, परघात, उच्छ्वास और सचतुष्कके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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