SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामित्तपरूवणा देवगदि०४ ज. क. ? अण्ण तिरि० मणुस. सव्वसंकि० मिच्छत्ताभिमुहस्स । पंचिं०-तेजा०-क०-समचदु०-पसत्थवण्ण०४-अगु०३-पसत्थवि०-तस०४-सुभग-सुस्सर आदेंज-णिमिण-उच्चा० ज० के० ? अण्ण० चदुग० सागा० सव्वसंकि० मिच्छत्ताभिमु०। ४७६. असण्णि. पंचणा०-णवदंसणा०--मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०--अप्पसत्थवण्ण०४-उप०--पंचंत० ज० क० ? अण्ण. पंचिं० सागा० सव्वविसु० । सादासाद०-तिण्णिग०-चदुजादि-छस्संठा०-छस्संघ०-तिण्णिआणु०-दोविहा०-थावरादि०४थिरादिछयुग०-उच्चा० ज० क० १ अण्ण० मज्झिम० । इत्थि० --णqस०-अरदि-सोग० ज० क० ? अण्ण० तप्पा०विसु० । आयु० ओघं । तिरिक्व०--तिरिक्वाणु०-णीचा० तिरिक्खोघं । पंचिंदि०-वेउवि०-तेजा-क०-वेउवि० अंगो०-पसत्थवण्ण०४-अगु०३तस०४-णिमि० ज० क० ? अण्ण० सागा० सव्वसंकि० । ओरालि०--ओरालि०-- अंगो०-आदाउज्जो० ज० क० ? अण्ण. तप्पा०संकि० । अणाहार० कम्मइगभंगो। एवं सामित्तं समत्तं । नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्कके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्वके अभिमुख अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । पञ्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरार, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत, सर्व संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्वके अभिमुख अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। .४७६. असंज्ञी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर पञ्चन्द्रिय जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, तीन गति, चार जाति, छह संस्थान, छह संहनन, तीन भानुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर आदि चार, स्थिरादि छह युगल और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर मध्यम परिणामवाला उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्यायोग्य विशुद्ध अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। चारों आयुओंका भङ्ग ओघके समान है। तिर्यञ्चगति, तिर्यश्चगत्यानपर्वी और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है पश्चन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्ण चतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, सचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। औदारिकशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, आतप और उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी १. प्रा० प्रती देवगदि ज० इति पाठः । २. ता. प्रतौ श्रादेज........ज० क., श्रा० प्रतौ श्रादेज. जस० (अजस०)............ज. क. इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy