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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे १३ कालपरूवणा ४७७. कालं० दुविहं-ई-- जह० उक्क० । उक्क० पगदं० । दुवि० - ओघे० आदे० । ओत्रे ० पंचणा०-णवदंसणा ० - मिच्छ० - सोलसक० -भय-दु० -ओरालि० - अप्पसत्पर्व०४ उप० पंचंत० उक्क० अणुभागबंधगा ज० एग०, उक्क० बेसम० । अणुक० ज० एग०, उक्क० अनंतकालमसंखे० पोंग्गल० । सादा ००-- आहारदुग-उ - उज्जो ०--थिर-- -- सुभ--जस० क० [ जहण्णुक० ] एग० । अणुक० जह० एग०, उक० तो ० । असादा० छण्णोक०चदुआयु० - णिरय ० चदुजादि -- पंचसंठा०-पंच संघ० - णिरयाणु ०--आदाव०-- अप्पसत्थ०थावरादि०४- अथिरादिछे० उक० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अणु० जह० एग०, उक्क० तो ० । पुरिस० उक्क० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अणु० ज० एग०, उक्क० darasario सादि० । तिरिक्ख० तिरिक्खाणु० - णीचा० उक्क० ज० एग०, उक्क० बेसम० । अणु० ज० एग०, उक्क० असंखैज्जलो० । मणुस० - वज्जरि० - मणुसाणु० है । आहारक जीवोंमें कार्म काययोगी जीवों के समान भङ्ग है । २३८ इस प्रकार जघन्य अनुभागबन्धका स्वामित्व समाप्त हुआ । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । १३ कालप्ररूपणा उपघात ४७७. काल दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, श्रदारिकशरीर, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है । सातावेदनीय आहारकद्विक, उद्योत, स्थिर, शुभ और यशःकीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । असातावेदनीय, छह नोकषाय, चार आयु, नरकगति, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, नरकगत्यानुपूर्वी, आप, अपरास्त विहायोगति, स्थावरादि चार और अस्थिरादि छहके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट वाल दो समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । पुरुषवेद के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल साधिक दोछियासठ सागर है । तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल असंख्यात प्रमाण है । मनुष्यगति, वज्रर्षभनाराच संहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वी के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका १. ता० प्रा० प्रत्योः श्रोरालि० श्रोरालि० श्रप्यसत्थव० इति पाठः । २. ता० प्रा० प्रत्योः थावरादि ४ थिरादिछ० इति पाठः । ३. ता० प्रा० प्रत्योः वेसम० छावट्टिसाग० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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