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________________ २३६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे मझिम । इत्थि०-अरदि-सोग० ज० क० १ चदुग० तप्पा०वि० । तिरिक्ख-मणुसायु० ज० चदुगदि० मज्झिम० । देवायु'० ज० ? तिरि० मणुस० मज्झिम० । तिरिक्व०तिरिक्खाणु०-णीचा० ज० क. ? अण्ण. सत्तमाए पुढ० णेरइ० सव्ववि० । देवग०देवाणु० ज० ? तिरिक्ख० मणुस० परि०मझिम० । ओरालि०-ओरालि०अंगो०-उज्जो. ज०१ चदुग० सव्वसंकि० । पंचिंदि०-तेजा-क०-पसत्थवण्ण०४-अगु०३-तस०४णिमि० ज० ? चदुगदि० सव्वसंकि० । वेउव्वि०---वेउवि० अंगो० ज० ? तिरि० मणुस० सव्वसंकि०। ४७५. सम्मामि० पंचणा-छदसणा०-बारसक०-पंचणोक०-अप्पसत्थवण्ण०४ उप०-पंचंत० ज० क० ? अण्ण० चदुग० सव्ववि० सम्मत्ताभिमुह० । सादादिचदुयुग० ज० क०? अण्ण० चदुगदि०मज्झिम० । अरदि-सोग० ज० क०? अण्ण० चदुग० तप्पा०विसु० । मणुसगदिपंचग० ज० क० १ अण्ण० देव-णेरइ० सव्वसंकि० मिच्छत्ताभिमु०। अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद, अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यश्चायु और मनुष्यायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? मध्यम परिणामवाला अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । देवायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? मध्यम परिणामवाला तिर्यश्च और मनुष्य देवायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशद्ध अन्यतर सातवीं पृथिवीका नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। देवगति और देवगत्यानुपूर्वीके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी है। औदारिकशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पञ्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कामणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, सचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर तियञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। ४७५. सम्यग्मिथ्यात्वमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध और सम्यक्त्वके अभिमुख अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभाग. बन्धका स्वामी है। सातादि चार युगलके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशद्ध अन्यतर चार शतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यगति पञ्चकके जघन्य अनभागबन्धका स्वामी कोन है ? सर्व संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्वके अभिमुख अन्यतर देव और १. ता० प्रती देवाणु० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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