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________________ सामित्तपरूषणा २३५ ४७२. अब्भवसि० पंचणा०-णवदंसणा०--मिच्छ ०--सोलसक० --पंचणोक०अप्पसत्थवण्ण०४-उप०-पंचंत० ज० क. ? अण्ण० चदुग० पंचिं० सण्णि० सागा० सव्वविसु० । सादासादा०-मणुस०-छस्संठा०-छस्संघ०-मणुसाणु०-दोविहा०-थिरादिछयुग०-उच्चा० ज० चदुग० परि०मज्झिम०। इत्थि०-णस०-अरदि-सोग० ज० क० ? अण्ण० चदुग० तप्पा०विसु० । सेसं ओघं । ४७३. खइगे ओधिभंगो। णवरि सत्थाणे जहण्णयं करेदि । वेदगे पंचणा०छदसणा०--चदुसंज०-पंचणोक०--अप्पसत्थवण्ण०४-उप०-पंचंत० ज० क. ? अण्ण. अप्पमत्त० सागार० विसु० । सेस ओधिभंगो० । उवसम० ओधिभंगो० । तित्थय० मणुस० सव्वसंकि० । ४७४. सासणे पंचणा०-णवदंसणा-सोलसक०-पंचणोक०--अप्पसत्थ०४उप०-पंचंत० ज० क० १ अण्ण० चदुगदि० सागा० सव्वविसु० । सादासाद०-मणुस.. पंचसंठा०-पंचसंघ०--मणुसाणु०--दोविहा०-छयुगल०--उच्चा० ज० चद्गदि० परि० भागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर देव तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। ४७२. अभव्योंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गतिका पञ्चन्द्रिय संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, मनुष्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थिर आदि छह युगल और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति और शोकके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओधके समान है।। ४७३. क्षायिक सम्यक्त्वमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि यह जघन्य अनुभागबन्ध स्वस्थानमें करता है। वेदक सम्यक्त्वमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पाँच नोकवाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपचात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवों के समान है। उपशम सम्यक्त्वमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि इसमें सर्व संकलशयुक्त मनुष्य तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। ४७४. सासादनसम्यक्त्वमें पाँच ज्ञानावरण, ना दशनविरण, सालह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क. उपघात और पाँच अन्तरायक जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, मनुष्यगति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थिरादि छह युगल और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिषर्तमान मध्यम परिणामवाला भन्यतर चार गतिका जीय उक्त प्रकृतियोंके जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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