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________________ २३३ सामित्तपरूवणा ४६६. तेउले. पंचणा०-छदसणा०-चदुसंज०-पंचणोक-अप्पसत्थवण्ण०४उप०-पंचंत० ज० क. ? अप्पमत्त० सव्वविसु०। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-बारसक०अरदि-सो०-आहारदुर्ग ओघं । सादादिचदुयुग० ज० ? तिगदि० परिमझिम० । इत्थि० ज०? तिगदि० तप्पा०विसु० । णवंस० ज० ? देव० तप्पा०विसु० । तिरिक्खमणुसायु० १ देव० मिच्छा० मज्झिम० । देवायु० ज० १ तिरि० मणुस० मज्झिम० । तिरिक्वग०-मणुस०-एइंदि०-पंचिं०-छस्संठा०-छस्संघ०-दोआणुपु०-दोविहा०-तस०थावर-तिण्णियुगल०-दोगोद० ज० क० ? अण्ण० देव० परि०मज्झिम० । देवगदि०४ ज० क० ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० मिच्छादि० सव्वसंकि० । ओरालि०-तेजा०क०-पसत्थवण्ण०४-अगु०३-आदाउज्जो०-वादर-पज्जत्त--पत्ते-णिमि० ज० क. ? अण्ण० सोधम्मीसाणं० मिच्छादिहिस्स सव्वसंकि० । ओरालि.अंगो० ज० ? सोधम्मीसा० तप्पा० संकि० । तित्थय० ज० ? देव० सोधम्मीसा० असंजद० सव्वसंकि०। ४६६. पीतलेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पाँच नोकवाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व विशुद्ध अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, बारह कपाय, अरति, शोक और आहारकद्विकका भङ्ग ओघ के समान है। सातादि चार युगलोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागबन्धका कौन है? तत्प्रायोग्य विशद्ध तीन गतिका जीव स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? तत्यायोग्य विशुद्ध देव नपुसकवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है ? तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? मध्यम परिणामवाला मिथ्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । देवायुके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? मध्यम परिणामवाला तिर्यश्च और मनुष्य देवायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, एकेन्द्रियजाति, पश्चन्द्रियजाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो अानुपूर्वी, दो विहायोगति, त्रस, स्थावर,मध्यके सुभगादि तीन युगल और दो गोत्रके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर देव उक्त प्रकृतियोंके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्कके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वसंक्लिष्ट अन्यतर मियादृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। औदारिकरारीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, आतप, उद्योत, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि सौधर्म और ऐशान कल्प तकका देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। औदारिक आङ्गोपाङ्गके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेश युक्त अन्यतर सौधर्म और ऐशान कल्प तकका देव उक्त प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेश युक्त अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि सौधर्म और ऐशान कल्पका देव उक्त प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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