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________________ २३२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे वेवि०-वेउव्वि०अंगो० ज० क. ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० मिच्छा० सागा. सव्वसंकि० । आदाव० १ दुगदियस्स तप्पा०संकि० । तित्थ० ओघं । ४६८. णील-काउलेस्साणं [पंचणाणावरणादि जाव णिरयगदंडगा ति किण्णभंगो । तिरिक्व -तिरिक्वाणु०-णीचा० ज० क० ? अण्ण० बादरतेउ०-वाउ० सागा० सव्ववि० । पंचिंदि० [ओरालि-तेजा०-कम्म०] ओरालि० अंगो०-पसत्थवण्ण०४-अगु३तस०४-णिमि० ज० क० १ अण्ण० णेरइ० मिच्छा० सागा० सव्वसंकि० । मणुस०छस्संठा- छस्संघ०-मणुसाणु०-दोविहा०-तिण्णियुगल-उच्चा० ? तिण्णिगदि० परि० मज्झिम० । वेउव्वि०-वेउव्वि०अंगो० ज० क० ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० मिच्छा० सागा० सव्वसंकि०] आदाव० ज० क० ? अण्ण० दुगदि० तप्पा०संकि० । उज्जो० ? णेरइ० सव्व०संकि० । णीलाए तित्थ० मणुस. तप्पा०संकि० । काऊए तित्थय० णिरयोघं। दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आतपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर दो गतिका जीव आतप के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। ४६८. नील और कापोत लेश्यामें पाँच ज्ञानावरण दण्डकसे लेकर नरकगति दण्डक तकका भङ्ग कृष्णलेश्याके समान है। तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर बादर अग्निकायिक और बादर यक जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पञ्चन्द्रियजाति, औदारिक शरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्तवर्ण चतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यराति, छह संस्थान, छह संहनन. मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके सुभगादि तीन युगल और उच्च गोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक आङ्गोपाङ्गके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? साकार-जागृत और सवें संक्लिष्ट अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च या मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । आतपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट अन्यतर दो गतिका जीव आतपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर नारकी उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। नीललेश्यामें तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त मनुष्य है। तथा कापोतलेश्यामें तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी सामान्य नारकियोंके समान है। १. ता० प्रा० प्रत्योः सवसंकि० । सादादिचदुयुग. ज. तिगदि० परिमझिमः । श्राउ. प्रोघं । मणुस० इति पाठः । २. ता० श्रा० प्रत्योः परि०मझिम० इथि० णवंस० ज० क.? तप्पा० विसु । अरदिसोग० ज०? हैरह. असंजद० तप्पा. विसु० । श्रादाव० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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