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________________ सामित्तपरूवणा भिमु० । सेसं ओघं। ४६७. किण्णाए पंचणा०-छदसणा०-बारसक०-पंचणोकसाय-अप्पसत्थवण्ण०४उप०-पंचंत० ज० क० ? अण्ण० णेरइ० असंजदस० सागा० सव्वविसु० । सादादिचदुयुग० ? तिगदि० परि०मज्झिम० । थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबं०४ ज० क. अण्ण रइ. मिच्छा० सागा० सव्वविसु० सम्मत्ताभिमु० । इत्थि०-णqस० ज० क० १ अण्ण रइ० तप्पा०विसु० । अरदि-सोग० ज० क० १ अण्ण० णेरइ० सम्मादि. तप्पा०विसु० । आउचदु० ओघं । णिरय०-देवग०-चदुजादि-दोआणु०-थावरादि०४ ज० क० ? अण्ण तिरि० मणुस० परि०मझिम० । तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु०णीचा० ओघं। मणुसग० छस्संठाण-छस्संघडण-मणुसाणु०-दोविहा०-तिण्णियुगल०उच्चा० ज० क० १ अण्ण. तिगदि० परि०मज्झिम० | पंचिंदिय०-तेजा०-क०-पसत्थवण्ण०४-अगु०३-तस०४-णिमि० ज० क.? अण्ण० तिगदियस्स सागा० सव्वसंकि०। ओरा०-ओरा०अंगो०-उज्जो० ज० क.? णेरइ० मिच्छा. सव्वसंकि० । साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और संयमके अभिमुख अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघ के समान है। ४६७. कृष्ण लेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्ण चतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर असंयत सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। सातादि चार युगलोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और सम्यक्त्वके अभिमुख अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? तत्यायोग्य विशुद्ध अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। चार आयुका भङ्ग ओघके समान है । नरकगति, देवगति, चार जाति, दो आनुपूर्वी और स्थावर आदि चारके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तियश्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियाक जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तियञ्चगति, तियश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगात्रका भङ्ग ओघके समान है । मनुष्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके सुभगादिक तीन युगल और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । पश्चोंद्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनभागबन्धका स्वामी कौन है? साकार-जाग्रत और सर्वसंक्लेशयुक्त अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । औदारिकशरीर, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग और उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर मिध्या १. प्रा० प्रतौ बारसक० अप्पसस्थवरण ४ इति पाठः। २. श्रा० प्रती पाउचदु. पिरयः इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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