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________________ २२६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे आदव-तित्थयं० ज० क० ? अण्ण० तिगदि० सव्वसंकि० । ४५८. इत्थि० पंचणा०-चदुदंसणा०--चदुसंज०--पुरिस०-पंचंत० ज० क.? अण्ण० खवग० अणियट्टि० चरिमे ज० अणु० वट्ट० । पंचदंस०-मिच्छ०-बारसक०अट्टणोक० चदुआयु०-आहारदुग-अप्पसत्थवण्ण०४-उप०-तित्थय० ओघं। णवरि इत्थि०णवंस० तिगदि० तप्पा० । सादादिचदुयुग० ज० क० ? अण्ण० तिगदि० मिच्छा. सम्मादि० परिय०मज्झिम० । णिरय-देवगदि तिण्णिजादि-दोआणु०-मुहुम०-अपज्ज०साधा० ज० क० ? अण्ण तिरिक्व० मणुस० मिच्छा० परि०मज्झिम० । तिरिक्ख०मणुसग०-एइंदि०-छस्संठा०-छस्संव०-दोआणु०-दोविहा०-थावर०-तिण्णियुग०-णीचुच्चा० ज० क० ? अण्ण. तिगदि० मिच्छा० परि०मज्झिम० । पंचिंदि०-[ वेउ०-] वेउ० अंगो०-तस० ज० क० ? अण्ण० तिरिक्ख० प्रणुस० सव्वसंकि० । ओरालि०-आदावुज्जो० ज० क. ? अण्ण० देव० मिच्छा० सव्वसंकि० । तेजा-क०-पसत्थवण्ण०४अगु०३-बादर-पज्ज०-पत्ते०-णिमि० ज० क. ? अण्ण० तिगदि० मिच्छा० सव्वसंकि० । स्वामी है। आतप और तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयक्त अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त दो प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी है। ४५८. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी है। पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, आठ नोकवाय, चार आयु, आहारकद्विक, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और तीर्थङ्करका भङ्ग ओवके समान है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य स्वामित्व तत्प्रायोग्य तीन गतिवालेके कहना चाहिए। सातादि चार युगलके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। नरकगति. देवगति, तीन जाति, दो आनुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, एकेन्द्रिय जाति, छह संस्थान, छह संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थावर, तीन युगल, नीचगोत्र और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका मिध्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पञ्चन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक प्राङ्गोपाङ्ग और उसके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। औदारिक शरीर, पातप और उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है। सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर तीन गतिका मिथ्यादृष्टि जीव १. प्रा० प्रतौ सव्वसंकि० तित्थय० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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