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________________ सामित्तपरूषणा २२५ सादादिचदुयुगल० ज० क० १ अण्ण०-चदुगदि० सम्मादि० मिच्छा० परि०मज्झिम० । इत्थि०-णवंस० ज० क. ? अण्ण० चदुगदि० मिच्छा. सागा० तप्पा०सव्ववि० । अरदि-सोग० ज० क.? अण्ण० चदुग० सम्मादि० तप्पा०विसु० । तिरिक्ख०तिरिक्वाणु०-णीचा० ज० क० १ अण्ण० सत्तमाए पुढ० सागा. सव्वविसु० । मणुसग०छस्संठा०-छस्संघ०-मणुसाणु०--दोविहा०--तिण्णियुग०--उच्चा० ज० क० ? अण्ण० चदुग० मिच्छा० परिय०मज्झिम० । एइंदि०-थावर० ज० क. ? अण्ण. तिगदि० परि०मज्झिम० । तिण्णिजादि-सुहुम-अपज्ज०-साहा० ज० क.? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस० मिच्छा० परिय०मज्झिम०। पंचिं०-ओरालि०अंगो०-तस० ज० क. ? अण्ण. देव० सहस्सारंतस्स सव्वणेरइय० मिच्छा० सव्वसंकि० । ओरालि०-तेजा०-क०-पसत्थवण्ण०४-अगु०-णिमि० ज० क. ? अण्णचदुगदि० मिच्छा० सव्वसंकि० । पर०उस्सा०-उज्जो०-बादर-पज्ज०-पत्ते० ज० क० ? अण्ण० देव० णेरइ० मिच्छा० सागा० सव्वसंकि० । देवगदि०४ ज० क० १ अण्ण तिरिक्ख० मणुस० सम्मा० सव्वसंकि० । बन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? साकार-जागृत और तात्यायोग्य सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गतिका मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्त्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर चार गतिका सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर सातवीं पृथिवींका नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके सुभगादि तीन युगल और उच्च गोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर चार गतिका मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। एकेन्द्रिय जाति और स्थावरके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तीन जाति सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पश्चोन्द्रिय जाति, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और त्रसके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि सहस्रार कल्प तकका देव और सब नरकोंका नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गतिका मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । परघात, उच्छवास, उद्योत, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्कके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि तिर्यश्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका १. ता० श्रा० प्रत्योः सादा० इति पाठः । २ ता० प्रा०प्रत्योः तस. ४ इति पाठः। २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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