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________________ २२१ सामित्तपरूवणा दव्यो । तिरिक्ख०-तिरिक्वाणु०-णीचा. तिरिक्खोघं । एवं सवएइंदिए। ४५२. तेउ०-चाउ० पंचणा०-णवदंसणा० -मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०-तिरिक्वग०-अप्पसत्थ०४-तिरिक्वाणु-उप०-णीचा-पंचंत० जह• कस्स० ? अण्ण. बादरस्स सव्वविसु० । सेसं तिरिक्व० अप०भंगो० । ४५३. पंचिंदि०-तस०२-पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि०-कोधादि०४-चक्खु०अचक्षु०-भवसि०-सण्णि-आहारग ति ओघभंगो। ओरालियकायजोगी० मणुसि० भंगो । णवरि तिरिक्खग०-तिरिक्वाणु०-णीचा. तिरिक्वोघं । ४५४. ओरालियमि० पंचणाo--छदसणा०--बारसक०--पंचणोक०-. अप्पसत्थ वण्ण०४-उप०-पंचंत० ज० कस्स०? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० सम्मादि० सागा० सव्वविसु०। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबं०४ जह० कस्स० ? अण्ण० पंचिंदि० सण्णि. सागा० सव्ववि० । सादादिचदुयुगं० जह० कस्स० ? अण्ण० सम्मादि० मिच्छा. परिय०मज्झिम० । इत्थि-णqस० जह० कस्स० ? अण्ण० मिच्छा० तप्पा०विसु० जह० वट्ट । अरदि-सोग० जह० कस्स० ? अण्ण० सम्मा० तप्पा०विसु० । दोकि बादरोंके जघन्य स्वामित्व कहना चाहिए । तथा तिर्यञ्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इसी प्रकार सब एकेन्द्रियों में जानना चाहिए। ४५२. अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकवाय, तिर्यञ्च गति, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध अन्यतर बादर जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान है। ४५३. पञ्चन्द्रियद्विक, सद्विक, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, काययोगी, क्रोधादि चार कषायवाले, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंमें अोधके समान भङ्ग है। औदारिककाययोगी जीवोंमें मनुष्यनियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगी जीवोंके तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। ४५४. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कपाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर पञ्चन्द्रिय संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। साता-असाता, स्थिरअस्थिर, शुभ-अशुभ और यश कीर्ति-अयशःकीर्ति इन चार युगलोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि १. ता. प्रा. प्रस्योः सादादितिरिणयुग० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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