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________________ २१६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे विहा०-तिण्णियुगल०-उच्चा० जह० कस्स०? अण्ण० मिच्छा० परिय०मज्झिम० । पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०--क०-ओरालि अंगो० --पसत्थवण्ण४--अगु०३-उज्जो०-- तस०४-णिमि० जह० कस्स० ? अण्ण० मिच्छा. सागा० णि. उक्क० संकि० जह० वट्ट० । तित्थ० जह• कस्स० ? अण्ण सम्मादि० सागा० तप्पा०संकि० । एवं सत्तमाए पुढ० । णवरि मणुस०-मणुसाणु०-उच्चा० जह० कस्स० १ अण्ण० सम्माइहिस्स सम्मामिच्छत्ताभिमुहस्सं । एवं छउवरिमासु । तिरिक्ख०-तिरिक्वाणु०-णीचा० मणुसगदिभंगो। ४४६. तिरिक्खेसु पंचणा०-छदंसणा०-अहक०-पंचणोक-अप्पसत्थवण्ण०४उप०-पंचंत. जह० कस्स० ? अण्ण० संजदासंजद० सागार० सबविमु०। थीणगिद्धि०३-मिच्छ०-अणंताणुबं०४ जह० कस्स० ? अण्ण० मिच्छादि. सव्वविसु० संजमाभिमुह० जह० वट्ट० । अपञ्चक्खा०४ एवं चेव । णवरि असंज० । इत्थि०-णसं० जह. कस्स० १ अण्ण० मिच्छा० तप्पा०विसु० । अरदि-सोग० जह० कस्स० ? भङ्ग श्रोधके समान है । मनुष्यगति, छह, संस्थान छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, सुभगादि मध्यके तीन युगल और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है? मान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पञ्चन्द्रिय जाति, औदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, त्रसचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और जघन्य अनुभागबन्ध करने ला अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्यगति, मनुष्यागत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सम्यग्मिथ्यात्वके अभिमुख अन्यतर सम्यग्दति उक्त प्रकृतियोके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार प्रथम छह पृथिवियोंमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग जैसा नारकियों में मनुष्यगतिका जघन्य स्वामित्व कहा है,उस प्रकार जानना चाहिए। ४४६. तिर्यञ्चोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुक, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर संयतासंयत तियञ्च उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध, संयमासंयमके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। अप्रत्याख्यानावरण चारके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी इसी प्रकार है। इतनी विशेषता है कि असंयतसम्यग्दृष्टिके कहना चाहिए। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है? तत्प्रायोग्य विज्ञान 1. ता प्रतौ उच्चा• "भिमुहस्स, प्रा० प्रती उच्चा उक्क० कस्स अण्ण सम्मत्ताभिमुहस्स इति पाठ । २. श्रा० प्रतौ इस्थि० पुरिस गर्बुस० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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