SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामित्तपरूवणा २१५ कस्स० १ अण्ण० अपुव्वक० खवग० परभवियणामाणं वंधचरिमे० वट्ट० । आदाव० जह० कस्स० ? अण्ण० सोधम्मीसाणंतस्स देवस्स मिच्छादि० उक्क० संकि० जह० वट्ट । तित्थय० ज० क.? अण्ण० मणुस० असंजदसम्मा० सागा० णि. उक. संकि० मिच्छत्ताभिमुह० जह० वट्ट । ४४५. णिरएसु पंचणा०-छदसणा०-बारसक०-पुरिस०-हस्स-रदि-भय-दुगुं०अप्पसत्थवण्ण०४-उप०-पंचंत० ज० कस्स० ? अण्ण० सम्मादि० सागा. सव्ववि०। थीणगिद्धि०३-मिच्छत्त०-अणंताणुबं०४ जह• कस्स० ? अण्ण० मिच्छादि० सागा. सव्ववि० सम्मत्ताभिमु० जह० वट्ट । सादासादा०-थिराथिर-सुभामुभ-जस०-अजस०जह० कस्स० ? अण्ण० सम्मा० वा मिच्छा. वा परिय०मज्झिम० । इत्थि०-णवंस० ज. कस्स० ? अण्ण० मिच्छा० सागा. तप्पा०विसु० । अरदि-सोग० जह० कस्स० ? अण्ण० सम्मादि० सागा० तप्पा०विसु० जह० वट्ट० । तिरिक्खायु०मणुसायु० जह. कस्स० ? मिच्छा० जहण्णिगाए पज्जत्तणिवत्तीए णिवत्तमाणमज्झिम० जह० वट्ट। तिरिक्व०-तिरिक्वाणु०-णीचा. ओघं। मणुस०-छस्संठा०-छस्संघ०-मणुसाणु०-दो स्वामी कौन है? परभवसम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोंके बन्धके अन्तिम समयमें विद्यमान अन्यतर अपर्वकरण क्षपक जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आतपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सौधर्म-ऐशान कल्पतकका मिथ्यादृष्टि देव आतपके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संम्लेशयुक्त, मिथ्यात्वके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य तीर्थङ्कर प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। ४४५. नारकियोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपधात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, सम्यक्त्वके अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशःकीर्ति और अयशःकीर्तिके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि नारको उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी है। स्त्रीवद और नपुसकवेदके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान, मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यश्चगति, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy