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________________ २१४ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तिरिक्ख ० - तिरिक्खाणु०-णीचा ० ज० क० : अण्ण० सत्तमाए पुढ० मिच्छा० सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्ज० सागा० सव्वविसु ० सम्मत्ताभिमुह० जह० वट्ट० । मणुस०-छसंटा ०छसंघ०- मणुसाणु० - दोविहा० - मज्झिल्लतिष्णियुग० उच्चा० जह० कस्स ० १ अण्ण० चदुगदि० पंचिंदि० सष्णि० मिच्छादि० परिय०मज्झिम० ज० वट्ट० । एइंदि०थावर० जह० कस्स० ? अण्ण० तिगदि० मिच्छा० परिय०मज्झिम० । तिण्णिजा०सुहुम ०-अप ० - साधार० जह० कस्स० अण्ण० तिरिक्ख० मणुस० मिच्छादि० परिय०मज्झिम० । पंचि०- तेजा ० क ०--पसत्थवण्ण०४ - अगु०३-तस०४ - णिमि० जह० कस्स ? अण्ण० चदुगदि० मिच्छा ० सागा०शि० उक्क० संकि० । ओरालि०-ओरालिअंगो०- उज्जो ० ज० क० अण्ण० देवस्स० णेरइ० मिच्छादि० सव्वाहि ० प० सागा० णि० ० उक्क० संकि० । वेडव्वि० - वेडव्वि० अंगो० ज० क० ? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस ० पंचिं० सपिण० मिच्छा० सव्वसंकिं० । आहारदुगं० ज० क० ? अण्ण० अप्पमत्तसंज० सागा० णि० उक्क० संकि० पमत्ताभिमुह० जह० वट्ट० । अप्पसत्थ०४- उप० जह० अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ, साकार जागृत, सर्वविशुद्ध, सम्यक्त्व के अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सातवीं पृथिवीका मिध्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, मध्यके सुभगादिक तीन युगल और उच्चगोत्रके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर चार गतिका पंचेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । एकेन्द्रिय जाति और स्थावर के जघन्य अनुभाग वन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियों के जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । पंचेन्द्रिय जाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क और निर्माण के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गतिका मिध्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और उद्योतके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, साकार जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर मिध्यादृष्टि देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिक श्रङ्गोपाङ्गके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर पंचेद्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । आहारकद्विकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, प्रमत्तसंयम अभिमुख और जवन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । अप्रशस्त वर्णचतुष्क और उपघातके जघन्य अनुभागबन्धका १. ता० प्रतौ मिच्छा० । सव्यकि० | मिच्छा सध्वसंधि ( ? ) श्राहारदुगं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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