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________________ सामित्तपरूवणा २१३ अण्ण० मणुस० असंजदसम्मा० सागा० सव्वविसु० से काले संजमं पडिवज्जिहिदि त्ति । एवं पच्चक्रवाणा०४ । णवरि संजदासंज० । कोधसंजल. जह० कस्स०? अण्ण० खवग० अणियट्टि० कोषसंजल० चरिमे अणुभा० वट्ट० । एवं माण-मायाणं। लोभसंजल० जह० कस्स ? अण्ण० खवग. अणियट्टि० चरिमे जह० वट्ट० । इत्थि०णस० जह० कस्स० ? अण्ण० चदुग० पंचिंदि० सण्णि० मिच्छा० सव्वाहि. सागा. तप्पा०विरु । पुरिस० जह० कस्स० ? अण्ण. खवगस्स अणियट्टि० पुरिस० चरिमे अणु० वट्ट० । हस्स-रदि-भय-दुगुं० जह० कस्स० ? अण्ण० खवग० अपुव्व० सागा० सव्वविसु० चरिमे अणुभा० वट्ट० । अरदि-सोग० जह० कस्स० ? अण्ण० पमत्त. सागा० तप्पा०विसु० । णिरय-देवाउ० जह० कस्स० ? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस० मिच्छा० जहण्णिगाए पज्जत्तगणिव्वत्तीए णिव्यत्तमाणयस्स मज्झिमपरिणामस्स । तिरिक्ख०-मणुसाउ० जह० कस्स० ? अण्ण. तिरिक्व० मणुस० मिच्छादि० जहणियाए अपज्जत्तगणिव्वत्तीए णिव्वत्तमाणमज्झिम० । णिरय-देवगदि-दोआणु० ज० कस्स० ? अण्ण तिरिक्ख-मणुस० मिच्छा० परिय०मझिम. जह० वट्ट । अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और तदनन्तर समयमें संयमको प्राप्त होनेवाला अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण चारके जघन्य अनभागवन्धका स्वामी है। इतनी विशेषता है कि यह संयतासंयतके कहना चाहिए । क्रोधसंज्वलन के जयन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? क्रोधसंज्वलनके अन्तिम अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव उक्त प्रकृतिके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार मानसंज्वलन और माया संज्वलनके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी जानना चाहिए । लोभसंज्वलनके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है। अन्त में जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव लोभसंज्वलनके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और तत्यायोग्य विशुद्ध अन्यतर चार गतिका मिथ्याष्टि पञ्चन्द्रिय संज्ञी जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। पुरुषवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्तमें पुरुषवेदका जघन्य अनुभागवन्ध करनेवाला अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव पुरुषवेदके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। हास्य, रति, भय और जगासाके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत सर्वविशद्व परिणामवाला और अन्तमें जघन्य अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर क्षपक अपूर्वकरण जीव इनके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। अरति और शोकके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्व अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। नरकायु और देवायुके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान और मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यश्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। तिर्यश्चायु और मनुष्यायुके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? जघन्य अपर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तिमान और मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागवन्धका स्वामी है। नरकगति, देवगति और दो आनुपूर्वी जयन्य अनुभागयन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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