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________________ सामित्तपरूवणा २११ विसु०। मणुसगदिपंचग० उक्क० कस्स०? अण्ण० देव० णेरइ० सव्ववि०। देवगदि०४ तिरिक्ख० मणुस० सागा० सव्वविसु० । उज्जो० उक्क० कस्स० ? अण्ण० सत्तमाए पुढवीए सागार० सव्वविसु० ।। ४४२. सम्मामि० पंचणा०-छदंसणा०--असादा०--बारसक०-पंचणोक०-अप्पसत्थवण्ण०४-उप०-अथिर-असुभ-अजस०-पंचंत० उक्क० कस्स०? अण्ण० चदुगदि. सागा० णि० उक्क० संकि० मिच्छत्ताभिमु० । सादावे-पंचिंदि०-तेजा-क०-समचदु०पसत्थवण्ण०४-अगु०३-पसत्थवि०-तस०४-थिरादिछ०-णिमि०-उच्चा० उक्क० कस्स० ? अण्ण० चदुगदि० सागा० सव्वविसु० समत्ताभिमु० । हस्स-रदि० उक्क० कस्स० ? अण्ण० चदुगदि० तप्पा०संकि० । मणुसगदिपंचग० उक्क० कस्स० ? अण्ण० देव-णेरइ० सागा० सव्वविसु० सम्मत्ताभिमुह० । देवगदि०४ उक्क० कस्स० ? अण्ण तिरिक्ख० मणुस० सम्मत्ताभिमुह० । ४४३. मिच्छादिट्टी० मदिभंगो । सण्णी० ओघं । असण्णी. तिरिक्खोघं । णवरि सादादीणं उक्क० कस्स० ? अण्ण. पंचिंदि० सागा० सव्वविसु० । आहार० तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर मनुष्य देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यगतिपञ्चकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। देवगति चारके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर सातवीं पृथिवीका नारकी उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। ४४२. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, बारह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयशःकीर्ति और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्वके अभिमुख अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, पञ्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्र संस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिरादि छह, निर्माण और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और सम्यक्त्वके अभिमुख अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोम्य संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गतिका जीव हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यतिपञ्चकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्व विशुद्ध और सम्यक्त्वके अभिमुख अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। देवगति चतुष्को अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सम्यक्त्वके अभिमुख अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। ४४३. मिथ्यादृष्टि जीवोंके मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। संज्ञी जीवोंके ओवके समान भङ्ग है। असंज्ञी जीवोंमें सामान्य तिर्यञ्चोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि सातादि २६ प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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