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________________ २०६ महाणुभागबंधाहियारे तिरिक्ख० मणुस ० उक्क० संकि० उक्क० वट्ट० । तिरिक्ख ० - असं प ० - तिरिक्खाणु० उक्क० कस्स० ? अण्ण० णेरइ० उक्क० संकि० | देवगदि १०४ उक्क० कस्स० १ अण्ण० तिरिक्ख ० ० मणुस सम्मादि० सव्वविसु० उक्क० वट्ट० | चदुजादि - थावरादि४ उक्क० कस्स ० ? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस० सागा० तप्पा०संकि० | आदाव० उक्क० कस्स० ? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस० मिच्छा० तप्पा० विसु० । उज्जोव० ओघं । तित्थ० उक्क० कस्स० ? अण्ण० मणुस असंजदसं० सागा० तप्पा० विसु ० । ४३५. णील०-काऊ० पंचणा०--णवदंसणा० - असादा०-मिच्छ०- सोलसक०पंचणोक० - तिरिक्ख० - हुंड० - असंप ० - अप्पसत्थवण्ण०४ - तिरिक्खाणु० - उप० - अप्पस ०अथिरादिछ०-णीचा :- पंचंत० उक्क० कस्स० ? अण्णद० णेरइ० मिच्छादि० सागा० सव्वसंकिलि० १० उक० वह० । सादा० मणुसगदिपसत्थद्यावीसं उच्चा० उक्क० कस्स० १ अण्ण० रइ० सम्मादि० सव्वविसु ० । इत्थि० - पुरिस०- हस्स-रदि- चदुसंठा० चदुसंघ० उक्क० कस्स० ? अण्ण० णेरइ० मिच्छा० तप्पा० [0 संकिलि० उक० वट्ट० । उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागवन्ध करनेवाला अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । तिर्यञ्चगति, श्रसम्प्राप्तासृपाटिकासंहनन और तिर्यञ्चगत्यानुपूत्र के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर नारी उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । देवगति चतुष्क के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य देवगति चतुष्कके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । चार जाति और स्थावर आदि चार उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य संक्लिष्ट अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । आपके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य मिथ्यादृष्ट आतपके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । उद्योतका भङ्ग के समान हैं । तीर्थङ्कर प्रकृति के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर असंयत सम्यग्दृष्टि मनुष्य तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । ४३५. नील और कापोत लेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकपाय, तिर्यञ्चगति, हुण्डसंस्थान, असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन, प्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उपवात, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर आदि छह, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार - जागृत, सर्व संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागवन्ध करनेवाला अन्यतर मिध्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय, मनुष्यगति आदि प्रशस्त अट्ठाईस प्रकृतियाँ और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वविशुद्ध अन्यतर सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, चार संस्थान और चार संहननके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिध्यादृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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