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________________ २०५ सामित्तपरूत्रणा ४३३. असंजद० सादा०-देवगदिपसत्यहावीसं तित्थ०-उच्चा० उक्क० कस्स. ? अण्ण. मणुस. असंजदसम्मादिहिस्स सागा० सव्वविसु० संजमाभिमुह । देवाउ० उक्क० कस्स० १ अण्ण० मणुस० मिच्छादि० सागा० तप्पा०विसु० उक्क० वट्ट० । सेसाणं ओघं० । चक्खु०-अचक्खु ओघं । ४३४. किण्णाए पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०हुड०-अप्पसत्यवण्ण०४-उप०-अप्पस०-अथिरादिछ०-णीचा०-पंचंत० उक्क० कस्स० ? अण्ण तिगदि० पंचिंदि० सण्णि० मिच्छा० सागा० णि० उक्क० संकिलि० । सादा० मणुस०-पंचिंदि०-ओरालि०-तेजा०-क०-समचदु०--ओरालिअंगो०--वज्जरि०--पसत्थवण्ण०४-मणुसाणु०-अगु०३-पसत्थवि०-तस०४-थिरादिछ०-णिमि०--उच्चा० उक्क० कस्स० १ अण्ण० रइ० असंजदसम्मा० सागार० सव्वविसु० उक्क० वट्ट० । चदुणो०चदुसंठा०-चदुसंघ० उक्क० कस्स० ? अण्ण. तिगदि० तप्पाओ०संकि० । तिण्णि आउ० ओघं० । देवाउ० उक्क० कस्स० ? अण्ण. तिरिक्व० मणुस० मिच्छादि. सम्मादि० तप्पा०विसु० उक० वट्ट० । णिरयगदि-णिरयाणु० उक्क० कस्स० १ अण्ण. ४३३. असंयत जीवोंमें सातावेदनीय और देवगति आदि प्रशस्त अट्ठाईस प्रकृतियाँ, तीर्थकर और उच्चगोत्रके उकृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और संयमके अभिमुख अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुर स्वामी है। देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि मनुष्य देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। चक्षुदर्शनवाले और अचक्षुदर्शनवाले जीवों में स्वामित्व ओघके समान है। ४३४. कृष्ण लेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह काय, पाँच नोकषाय, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर आदि छह, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर तीन गतिका पंचेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, ओदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराच संहनन, प्रशस्त वणचतुष्क मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिरादि छह, निर्माण और उच्चगोत्र के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागवध करनेवाला अन्यतर असंयत सम्यग्दृष्टि नारकी उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। चार नोकषाय, चार संस्थान और चार संहननके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्त्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। तीन आयुओंका भङ्ग ओघके समान है। देवायुके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य मिथ्यादृष्टि या सम्यग्दृष्टि जीव देवायुके १. ता०मा० प्रत्यो अगु०४ पसस्थवि० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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