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________________ AAAAAAAN २०४ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ४३१. [ परिहारे ] पंचणाणादी० मणपज्जवमंगो'। णवरि सामाइ०-छेदोवहावणाभिमुह. सव्वसंकिलि। सादादीणं अप्पमत्त० सव्वविसु० । हस्स-रदि० उक्क० कस्स० १ अण्ण० पमत्तसं० तप्पाओग्गसंकि० । देवाउ० ओघं । मुहुमसंप० पंचणा०-चदुदंसणा-पंचंत० उक्क० कस्स० १ अण्ण० उवसाम० परिवद० उक्क० वट्ट० । सादा०-जस०-उच्चा० ओघं । ४३२. संजदासजदे पंचणा०-छदसणा०-असादा०-अहक०-पंचणोक०-अप्पसत्यवण्ण०४-उप०-अथिर-असुभ-अजस०-पंचंत. उक० कस्स० ? अण्ण तिरिक्ख-मणुस० सागार सव्वसंकि० मिच्छत्ताभिमह० उक० वट० । सादावे०-देवगदिपसत्थहावीसं तित्थ०-उच्चा० उक्क० कस्स० १ अण्ण मणुस० सागा० सव्वविसु० संजमाभिमुह० उक० वट्ट० । हस्स-रदि० उक. कस्स० ? अण्ण तिरि० मणुस० सागा. तप्पा०संकि० उक्क० वट्ट । देवाउ० उक्क० कस्स० ? अण्ण तिरि० मणुस० तप्पा०विसु० उक्क० वट्ट० । कौन है ? अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागकाण्डकमें विद्यमान अन्यतर अनिवृत्तिक्षपक जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। ४३१. परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणादि ३४ प्रकृतियोंका भङ्ग मनःपर्ययज्ञानियों के समान है। इतनी विशेषता है कि सामायिक और छेदोपस्थापनासंयमके अभिमुख और सर्व संक्लेशयुक्त इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातादिकके सर्वविशद अप्रमत्तसंयत जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी हे। हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । देवायुका भङ्ग अोधके समान है। सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला (गिरनेवाला उपशामक जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका भङ्ग ओघके समान है। ४३२. संयतासंयत जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, आठ कषाय, पाँच नोकपाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयशःकीर्ति और पाँच अन्तराय के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्व संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्वके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । सातावेदनीय और देवगति आदि प्रशस्त अट्ठाईस प्रकृतियाँ तीथङ्कर सहित और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, संयमके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मनुष्य उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तियश्च और मनुष्य हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। १. ता. प्रतौ पंचणादि (णा.) मणपजवभंगो इति पाठः ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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