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________________ सामित्तपरूवणा ४२६. आभि०-सुद०-ओधि० पंचणा०--छदसणा०-असादा०-वारसक०--पंचणोक०-अप्पसत्थ०४-उप०-अथिर-असुभ-अजस०-पंचंत० उक्क० कस्स० ? अण्ण० चदुगदि० सागा० णिय० उक्क० संकि० मिच्छत्ताभिमुह० उक्क० वट्ट० । सादादिखविगाणं ओघं । हस्स-रदि० उक्क० कस्स० ? अण्ण० चदुग० सागा० तप्पा०संकि० । मणुसाउ० उक्क० कस्स० ? अण्ण० देव णेरइ० सागा. तप्पा०विसु० । देवाउ० ओघं। मणुसगदिपंचग० उक० कस्स० ? अण्ण देव० रइ० सागा० सव्वविसुद्ध। एवं ओधिदं०-सम्मादि० । ४३०. मणपज्ज० पंचणा०-छदसंणा०-असादा०-चदुसंज०-पंचणोक०-अप्पसत्थवण्ण०४-उप०-अथिर०-असुभ-अजस०-पंचंत० उक० कस्स०? अण्ण० पमत्तसं० सागा. सव्वसंकि० असंजमाभिमुह० उक० वट्ट० । सादादिखविगाणं ओघं । हस्स-रदि. उक्क० कस्स० ? अण्ण० पमत्तसं० सागा० तप्पाओग्गसंकि० । देवाउ० ओघं । एवं . संजदे। णवरि मिच्छत्ताभिमुह० । एवं सामाइ०-छेदो०। णवरि सादावे-जस० उच्चा० उक० कस्स० ? अण्ण० अणियट्टि० खवग० चरिमे उक० वट्ट० । ४२६. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवविज्ञानी जोवोंमें पाँच ज्ञानाः , छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, बारह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वणचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयशःकीर्ति और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकारजागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्वके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है। सातादि ३२ क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग ओवके समान है। हास्य और रनिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गतिका जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर देव और नारकी मनुष्यायुके उत्कृष्ट अनुभागनन्धका स्वामी है। देवायुका भङ्ग आपके समान है। मनुष्यगतिपञ्चकके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर देव और नारकी उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है । इसी प्रकार अवधिदशनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। ४३०. मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, चार संज्वलन, पाँच नोकपाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयशःकीर्ति और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामो कौन है ? साकार-जागृत, सर्व संक्लेशयुक्त, असंयमके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातादि ३२ क्षपक प्रकृतियों का भङ्ग ओघके समान है। हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और तत्प्रायोग्य क्लेशयुक्त अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव उक्त प्रक्रतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। देवायका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार संयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्वके अभिमुख जीवोंके पाँच ज्ञानावरणादिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कहना चाहिए। इसी प्रकार सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें सातावेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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