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________________ जीवसमुदाहारे फोसणपरूवणा १७६ ३६४. यवमज्झपरूवणदाए द्वाणाणं असंखेज्जदिमागे यवमझं। यवमझस्स हेवदो डाणाणि थोवाणि । उवरि हाणाणि असंखेज्जगुणाणि । ३६५. फोसणपरूवणदाए तीदे काले एयजीवस्स उक्कस्सए अज्झवसाणहाणे फोसणकालो थोवो। जहण्णए अज्झवसाणहाणे फोसणकालो असं० गुणो। कंडयस्स फोसणकालो तत्तियो चेव । यवमज्झे फोसणकालो असं०गुणो। कंडयस्स उवरि फोसणकालो असं०गुणो । यवमज्झस्स हेहदो कंडयस्स उवरिं फोसणकालो असं०गुणो। यवमझस्स उवरिं कंडयस्स हेढदो फोसणकालो तत्तियो चेव । यवमज्झस्स उवरिं फोसणकालो विसेसाधियो। कंडयस्स हेढदो फोसणकालो विसेसाधियो। कंडयस्स उरि फोसणकालो विसेसाधियो । सम्वेसु हाणेसु फोसणकालो विसेसाधियो । ३६४. यवमध्यप्ररूपणाकी अपेक्षा सब स्थानोंके असंख्यातवें भागमें यवमध्य होता है। यवमध्यके नीचेके स्थान स्तोक हैं । इनसे ऊपरके स्थान असंख्यातगुणे हैं। विशेषार्थ-नीचे चार समयवाले स्थानोंसे लेकर उपरिम दो समयवाले स्थानोंके असंख्यातवें भागप्रमाण जाकर यवमध्य होता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस हिसाबसे यवमध्यके नीचेके स्थान स्तोक होते हैं और इनसे उपरिम स्थान असख्यातगुणे होते हैं। ३६५. स्पर्शनप्ररूपणाकी अपेक्षा अतीत कालमें एक जीवका उत्कृष्ट अध्यवसानस्थानमें स्पर्शनकाल स्तोक है। इससे जघन्य अध्यवसानस्थानमें स्पर्शनकाल असंख्यातगुणा है । काण्डकका स्पर्शनकाल उतना ही है। इससे यवमध्यमें स्पर्शनकाल असंख्यातगुणा है। इससे काण्डकके ऊपर स्पर्शनकाल असंख्यातगुणा है । इससे यवमध्यके नीचे और काण्डकके ऊपर स्पर्शनकाल असंख्यात. गुणा है। इससे यवमध्यके ऊपर और काण्डकके नीचे स्पर्शनकाल उतना ही है। इससे यवमध्यके ऊपर स्पर्शनकाल विशेष अधिक है। इससे काण्डकके नीचे स्पर्शनकाल विशेष अधिक है। इससे काण्डकके ऊपर स्पर्शनकाल विशेष अधिक है । इससे सब स्थानोंमें स्पर्शनकाल विशेष अधिक है। विशेषार्थ-यहाँ चतुःसमयिक आदि स्थानों में से किस स्थानको एक जीवने कितने काल तक स्पर्श किया है, इसका विचार किया गया है। इसीका ज्ञान करानेके लिए यहाँ अल्पबहुत्व दिया गया है। उसका खुलासा इस प्रकार है उस्कृष्ट अध्यवसान स्थान द्विसमयिक है। इसका स्पर्शनकाल सबसे थोड़ा कहा है। जघन्य अध्यवसानस्थान प्रारम्भका चतुःसमयिक है। इसकी काण्डक संज्ञा भी है। इसका स्पर्शनकाल द्विसमयिकसे असंख्यातगुण कहा है। अगले चतुःसमयिककी भी काण्डक संज्ञा है। इसका स्पर्शनकाल पहले चतुःसमयिकके समान कहा है। पाठसमयिककी यवमध्य संज्ञा है। इसका स्पर्शनकाल चतुःसमयिकसे असंख्यातगुणा कहा है। यवमध्यसे पूर्वके और काण्डकसे आगेके ५, ६ और ७ समयिक स्थान हैं। इनका स्पर्शनकाल पाठसमयिक स्थानसे असंख्यातगुणा कहा है। यवमध्यसे आगेके और काण्डकसे पहलेके ५,६ और ५ समयिक स्थानों का स्पर्शनकाल पिछले ५, ६ और ७ समयिक स्थानोंके स्पर्शनकाल के बरावर कहा है। इससे यवमध्यसे भागेके अर्थात् ५,६,५,४, ३,२ समयिक स्थानोंका स्पर्शनकाल विशेष अधिक कहा है। इससे काण्डक अर्थात् अगले चतु:समयिकसे पहलेके अर्थात् ५, ६,७,८,७,६,५ और ४ समयिक स्थानोंका स्पर्शनकान विशेष अधिक कहा है। इससे प्रारम्भके काण्डको भागेके अर्थात् ५, ६,७,८,७,६, ५, ४, ३ ओर २ १.भा. प्रसौ यवमास्स उबरि कंडयस्स हेढदो फोसणकालो इति पाउः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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