SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ༢༣༤ महाचे अणुभागबंधाहियारे णामा० गोदा० सव्वत्थोवा उक्क० [वड्डी । उक्क ० हाणी] अनंतगु' । एवं सुदुमसंप० । ३४६. मदि० - सुद० असंज० - मिच्छा० ओघं । विभंगे ओघं । णवरि घादि०४ रियभंगो। आभि० - सुद० ओधि० वादि०४ सव्वत्थोवा उक्क० हाणी अवद्वाणं । चड्डी अनंतगु० । सेसाणं ओघं । एवं मणपञ्जव० संजद सामाइ० - छेदो ० - ओधिदं०- सम्मादि०उवसम ० - परिहार ०-संजदासंज० । वेदग० घादि०४ अधिभंगो । सेसाणं णिरयभंगो । सम्मामि० सत्तण्णं क० सव्वत्थो० हाणी अवद्वाणं । वड्डी अनंतगु० । सेखाणं णिरयभंगो । एवं उक्कस्सं समत्तं । ३४७. जहण्णए पगदं । दुवि० ओघे० आदे० | ओवे० घादि०४ सव्वत्थो० जह० हाणी | वड्डी अनंतगु० । अवद्वाणं श्रणंतगु० । गोद० सव्वत्थो० जह० हाणी | बड्डी अवद्वाणं दो वि तु० अनंतगु० । सेसाणि तिष्णि वि तुल्लाणि । ३४८. णिरसु गोद० ओघं । सेसाणं तिष्णि वि तुल्लाणि । एवं सत्तमाए । पढमादि याव छट्टि त्ति सव्वाणि तुल्लाणि । मणुस ० ३ ओघं । णवरि गोद० वेद० भंगो | वृद्धि अनन्तमुणी है । वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट हानि अनन्तगुणी है । इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों के जानना चाहिये । ३४६. मत्वज्ञानी, श्रताज्ञानी, असंयत और मिथ्यादृष्टि जीवोंमें अल्पबहुत्व ओघ के समान है । विभङ्गज्ञानी जीवों में अल्पबहुत्व श्रोघके समान है । इतनी विशेषता है कि चार घातिकर्मोंका भङ्ग नारकियों के समान है । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में चार घातिकर्मोंकी उत्कृष्ट हानि और अवस्थान सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट वृद्धि अनन्तगुणी है। शे कर्मों का भंग ओघ के समान है। इसी प्रकार मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि, परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवों के जानना चाहिये । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवों के समान है। शेष कर्मोंका भङ्ग नारकियों के समान है। सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक हैं। इससे उत्कृष्ट वृद्धि अनन्तगुणी है। शेष सब मार्गणाओं में नारकियों के समान भंग है 1 इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । ३४७. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | घसे चार वातिक्रमोंकी जघन्य हानि सबसे स्टोक है। इससे जघन्य वृद्धि अनन्तगुणी है। इससे जघन्य अवस्थान अनन्तगुणा है । गोत्रकर्मको जघन्य हानि सबसे स्तोक है । इससे जघन्य वृद्धि और जघन्य अवस्थान दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हैं। शेष कर्मोंके तीनों ही तुल्य हैं । ३४८. नारकियों में गोत्रकर्मका भंग ओघ के समान है। शेष कर्मोंके तीनों ही तुल्य हैं । इस प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिये। पहली पृथिवीसे लेकर छठवीं पृथिवी तकके नारकियों में सब पद तुल्य हैं। मनुष्यत्रिमें अल्पबहुत्व ओघ के समान है । इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मका भंग वेदनीयके समान है । पञ्चेन्द्रियद्विक, सद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी १ ता० प्रतौ सव्वत्थो० उक्क० हा० । उक्क० अनंतगुणा इति पाठः । २ ता० प्रतौ मिच्छा० ओषं । णवरि इति पाठः । ३ आ० प्रतौ सेसाणि इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy