SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पदणिक्खेवे अप्पाबहुअं अप्पाबहुअं ३४२. अप्पाबहुगं दुविहं-जह० उक्क० । उक्क० पगदं । दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० घादि०४ सव्वत्थोवा उक० वड्डी । अवट्ठाणं विसे० । हाणी विसे० । तिण्णं क० सव्वत्थोवा उक० अवट्ठाणं । उक्क० हाणी अणंतगु० । उक्क० वड्डी अणंतगु० । आउ० सव्वत्थोवा उक० वड्डी । उक्क० हाणी अवट्ठाणं दो वि तुल्लाणि विसे० । एवं ओघभंगो कायजोगि-कोधादि०४-अचक्खु०-भवसि०-आहारगे ति । ३४३. णिरएसु अट्टण्णं कम्माणं सव्वत्थोवा उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी अवट्ठाणं दो वि तुल्लाणि विसे० । मणुस०३ धादि०४ णिरयभंगो । वेद०-णाम०-गोद०-आउ० ओघं । एवं पंचिंदि०-तस०२-पंचमण-पंचवाचि०-ओरालि.इस्थि०-पुरिस०-णवंस० चक्खु०-सुक्क०-खइग० सण्णि ति । ३४४. ओरालियमि० सत्तण्णं कम्माणं सब्वत्थोवा उक० हाणी अवट्ठाणं । वड्डी अणंतगु० । आउ० णिरयभंगो। एवं वेउवियमि०-आहारमि० । कम्मइ० सत्तणं कम्माणं सव्वत्थोवा उक० अवट्ठाणं । वड्डी अगंतगु० । हाणी विसे । एवं अणाहार० । ३४५. अवगद० घादि०४ सव्वत्थोवा उक्क० हाणी । वड्डी अणंतगु० । वेद० अल्पबहुत्व ३४२. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्ट का प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे चार घाति कर्मोकी उत्कृष्ट वद्धि सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट अवस्थान विशेष अधिक है । इससे उत्कृष्ट हानि विशेष अधिक है। तीन कर्मों का उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट हानि अनन्तगुणी है। इससे उत्कृष्ट वृद्धि अनन्तगुणी है। आयुर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है । इससे उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान ये दोनों ही तुल्य होकर विशेष अधिक हैं। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये ।। ३४३. नारकियोंमें आठों कर्मों की उत्कृष्ट वृद्धि सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान दोनों ही तुल्य होकर विशेष अधिक हैं। मनुष्यत्रिकमें चार घातिकाँका भङ्ग नारकियोंके समान है। वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुकर्मका भङ्ग अोधके समान है। इसीप्रकार पश्चन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, औदारिककाययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, चक्षुदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये। ३४४. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक हैं । इनसे उत्कृष्ट वृद्धि अनन्तगुणी है । आयुकर्मका भङ्ग नारकियोंके समान है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें जानना चाहिये। कार्मणकाययोगी जीवोंमें सात कर्मोंका उत्कृष्ट अवस्थान सबसे स्तोक है। इससे उत्कृष्ट वृद्धि अनन्तगणी है। इससे उत्कृष्ट हानि विशेष अधिक है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये। ३४५. अपगनवदी जीवों में चार घातिकर्मीकी उत्कृष्ट हानि सबसे स्तोक है। इससे उत्कष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy