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________________ १५६ बंधे अणुभागबंधाहियारे असंजदे घादि०४ जह० वड्डी अवद्वाणं देवभंगी । जह० हाणी कस्स० ९ अण्ण० असंजदसं० संजमा भिमुह० सव्वविसु० जह० हाणी । सेसाणं मदि०भंगो । ३३६. किण्ण० णिरयभंगो । णील-काऊणं गोद० तिरिक्खोघं । सेसं णिरयभंगो । ते उ०१०- पम्म० घादि०४ जह० वड्डी कस्स० १ अण्ण० अप्पमत्त० सव्वविसु० अनंतभागेण वड्डिण वड्डी हाइदूण हाणी एक० अवद्वाणं । सेसाणं देवभंगो । सुकाए घादि०४ ओघं । सेसाणं आणदभंगो । ३४०. वेदगे घादि० परिहार०भंगो । सेसाणं ओधिभंगो । सासणे घादि०४ जह० बड्डी कस्स० १ अण्ण० सव्वविसु० जह० वडिदूण वड्डी हाइ० हा० एक० अवट्ठाणं । सेसं देवभंगो। सम्मामि० घादि०४ जह० वड्डी सत्थाणे । तस्सेव अवट्ठाणं । जह० हाणी ० १ सम्मत्ताभिमुह० जह० हाणी । सेसाणं वेदगसम्मादिट्टिभंगो । ३४१. असण्णी० घादि०४ जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० पंचिंदि० सव्वाहि पज० सव्वविसु० । सेसाणं तिरिक्खोघं । अणाहार० कम्मइगभंगो । एवं सामित्तं समत्तं भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। असंयत जीवोंमें चार वातिक्रमोंकी जवन्य वृद्धि और जघन्य अवस्थानका भङ्ग देवोंके समान है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि सर्वविशुद्ध संयम अभिमुख जीव है, वह जवन्य हानिका स्वामी है ? शेष कर्मोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है । ३३६. कृष्णलेश्यावाले जीवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। नील और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें गोत्रकर्मका भङ्ग सामान्य तिर्यनों के समान है। शेष कर्मोंका भङ्ग नारकियोंके समान है । पीत और पद्मलेश्यावाले जीवों में चार घातिकर्मोकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अप्रमत्तसंयत सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभाग जघन्य हानिको प्राप्त होता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमें से किसी एक के अवस्थान होता है । शेष कर्मोंका भङ्ग देवोंके समान है। शुक्ललेश्यावाले जीवों में चार वातिकर्मों का भङ्ग देवोंके समान है। शेष कर्मोंका भङ्ग अनतकल्पके समान है । ३४०. वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भङ्ग परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके समान है । शेष कर्मोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों में चार घाति कर्मोकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सर्वविशुद्ध जीव जघन्य वृद्धि से वृद्धिको प्राप्त है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो जघन्य हानिसे हानिको प्राप्त है, वह जघन्य दानिका स्वामी है और इनमें से किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। शेष कर्मोंका भङ्ग देवोंके समान है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें चार घाति कर्मोकी जघन्यवृद्धि स्वस्थानमें होती है । तथा उसीके जघन्य अवस्थान होता है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? सम्यक्त्वके अभिमुख हुआ अन्यतर जीव जघन्य हानिका स्वामी है। शेष कर्मोंका भङ्ग वेदकसम्यग्दृष्टिके समान है । ३४१. असंज्ञी जीवोंमें चार घातिकर्मोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर पञ्चन्द्रिय सब पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ सर्वविशुद्ध जीव जघन्य वृद्धिका स्वामी है। शेष भङ्ग सामान्य तिर्यों के समान है । अनाहारक जीवोंमें कार्मणकायोगी जीवोंके समान भङ्ग है । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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