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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं १५५ सागा० उक्क० संकिले० मिच्छत्ताभिमुह० चरिमे अणु० बट्ट० तस्स जह० हाणी । आउ० देवभंगो। एवं ओधिदंस०-सम्मादि०-खइग०-उक्सम० । णवरि खड़गे गोद. हाणी सत्थाणे उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स कादव्वं । मणपज० ओघ । णवरि गोद० वड्डी अवट्ठाणं ओधिभंगो। जह• हाणी कस्स० ? अण्ण० उक्क० संकिले. असंजमाभिमुह. चरिमे अणु० वट्ट० तस्स जह• हाणी । आउ० ओधिभंगो। एवं' संजद-सामा६०छेदो० । णवरि गोद० ओधिभंगो। ३३८. परिहार० घादि०४ जह० वड्डी कस्स०? अण्ण० अप्पमत्त० सव्वविसुद्धस्स अणंतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाइण हाणी एकदरत्थमवट्ठाणं । अथवा हाणी. ? दंसणमोहणीयस्स खवगस्स से काले कदकरणिजो होहिदि त्ति तस्स जह० हाणी । सेसं मणपज्जवभंगो । णवरि गोद० जह० हाणी० ? सामाइय-च्छेदोवट्ठावणाभिमुह तस्स जह० हाणी। संजदासंजदे घादि०४ जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० यो तप्पाओग्गउक्क०दो विसोधीदो पडिभग्गो तप्पा० जह० पदिदो तस्स जह० वड्डी । तस्सेव से काले जह० अवट्ठाणं । जह० हाणी कस्स० ? अण्ण० संजमाभिमुह० सव्वविसु० । सेसं ओधिभंगो। जो अन्यतर चार गतिका असंयतसम्यग्दृष्टि जीव है, वह जघन्य हानिका स्वामी है। आयुकर्मका भङ्ग देवोंके समान है। इसीप्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों में गोत्रकर्मकी जघन्य हानिका स्वामित्व स्वस्थानमें उत्कृष्ट संक्लिष्ट जीवके करना चाहिए । मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें अोधके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मकी वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। गोत्रकर्मकी जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव उत्कृष्ट संक्लेशके साथ असंयमके अभिमुख और अन्तिम अनुभागबन्धमें अवस्थित है वह जघन्य हानिका स्वामी है। आयुकर्मका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। इसीप्रकार संयत, सामायिकसंयत और छेदोप. स्थापनासंयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें गोत्रकर्मका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। ३३८. परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें चार घातिकर्मोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अप्रमत्तसंयत सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। अथवा जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो दर्शनमोहनीयका क्षपक जीव तदनन्तर समयमें कृतकृत्य होगा,वह जघन्य हानिका स्वामी है। शेष कर्मोंका भङ्ग मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मकी जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो जीव सामायिक और छेदोपस्थापनासंयमके अभिमुख है, वह जघन्य हानिका स्वामी है। संयतासंयत जीवों में चार घातिकर्मोकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। उसीके तदनन्तर समयमें जघन्य अवस्थान होता है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर संयमके अभिमुख सर्वविशुद्ध जीव है,वह जघन्य हानिका स्वामी है। शेष कर्मोंका ता. मा. प्रत्योः ओधिभंगो । सेसं मणुसिभंगो। एवं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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