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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं १५१ बड्डी कस्स० १ अण्ण० जहणियाए पञ्जत्तणिव्वत्तीए णिव्वत्तमाणयस्स मज्झिमपरिणामयस्स अणंतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाणिदूण हाणी एक्कदरत्थमवहाणं । वेद.. णामा०-गोद० ओघं। एवं सत्तमाए पुढवीए । सेसाणं पुढवीणं तं चेव । णवरि गोद. भंगो मिच्छादिहिस्स कादव्वं । __ ३३०. तिरिक्खेसु घादि०४ जह० वड्डी कस्स० ? अण्णद० संजदासंजदस्स सागार०सव्व विसुद्धस्स अणंतभागेण वड्विदण वड्डी हाणिदृण हाणी एक्कदरत्थमवट्ठाणं । गोद० जह० वड्डी कस्स० १ अण्ण० बादरतेउ०-वाउ० जीव० सव्वाहि पजत्तीहि पजत्तगदस्स सागा. सव्वविसु. अणंतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाणिद्ग हाणी एक्कदरत्थमवट्ठाणं । सेसं ओघं । [ एवं ] पंचिंदि०तिरि०३ । णवरि गोर्दः पढमपुढविभंगो। पंचिंदि०तिरि०अपज० धादि०४ जह० वड्डी कस्स०? सण्णिस्स सागार-जा. सव्व विसुद्ध० अणंतमागेण वड्डिदूण वड्डी हाणिदण हाणी एक्कदरत्थमवट्ठाणं। सेसाणं जोणिणिभंगो। एवं सव्वअपज०-सन्चाविगलिंदिय-पुढवि० आउ०-वणप्फदि-णियोद.. सव्वसुङमाणं ति। ३३१. मणुसेसु ओघं । णवरि गोद० अपज्जत्तभंगो। देवाणं पढमपुढविभंगो। है । जो अनन्तभाग हानिको प्राप्त होता है वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमें से किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। आयुकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान मध्यम परिणामवाला जीव अनन्तभाग वृद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है, जो हानिको प्राप्त होता है वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके अवस्थान होता है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। शेष प्रथिवियोंमें यही भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मका भङ्ग मिध्यादृष्टिके कहना चाहिए। " ३३०. तिर्यश्चोंमें चार घातिकर्मोकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर संयतासंयत साकार-जागृत सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभाग वृद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके अवस्थान होता है। गोत्रकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक सर्व पर्याप्तियोंसे पयाप्तिको प्राप्त हुआ साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके अवस्थान होता है । शेष कर्मोंका भंग भोधके समान है। इसी प्रकार पंचेन्द्रियतियञ्चत्रिकके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मका भंग पहली पृथिवीके समान है । पंचेन्द्रियतिथंच अपर्याप्तकोंमें चार घाति कर्मोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो संज्ञी साकार जागृत सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। शेष कोंका भंग योनिनियोंके समान है। इसी प्रकार सब अपर्याप्तक, सब विकलेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक, निगोद और सब सूक्ष्म जीवोंके जानना चाहिए। ३३१. मनुष्यों में ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि गोत्रकर्मका भंग अपर्यातकोंके समान है। देवों में पहली पृथिवीके समान भंग है। इसी प्रकार उपरिम अवेयकतक जानना ता. आ. प्रत्योः गोद वेदभंगो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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