SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे जह० अबढाणं । मोह. एसेव भंगो । णवरि अणियट्टिस्स कादव्वं बड्डि-हाणी । अबढाणं अप्पमत्तस्स । वेद०'-णाम० जह० वड्डी कस्स० ? अण्णद० सम्मादि० मिच्छादि. परियत्तमाणमज्झिमपरिणामस्स अणंतभागेण वड्डिद्ण वड्डी हाइदूण हाणी एकदरत्थमवट्ठाणं । गोद० जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० सत्तमाए पुढवीए अब्भवसिद्धियपाओग्गादो उक्कस्सियादो विसोधीदो पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो अणंतभागे वड्विदूण अवट्ठिदस्स तस्स जह०' वड्डी। तस्सेव से काले जह० अवट्ठाणं। जह०हाणी कस्स०१ अण्ण० सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु मिच्छादिहिस्स सव्वाहि पजत्तीहि पजत्तगदस्स सव्वविसुद्धस्स सम्मत्ताभिमुहस्स तस्त जह० हाणी। आउ० जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० जहणियाए अपजत्तणिवत्तीए णिव्वत्तमाणयस्स मज्झिमपरिणामस्स अणंतभागेण वड्डिण वड्डी हाइदूण हाणी एक्कदरस्थमवट्ठाणं। एवं ओघमंगो पंचिंदि०तस०२-पंचमण-पंचवचि० कायजोगि० कोधादि०४-चक्खुदं०-अचक्खुदं०-भवसि०सण्णि-आहारग त्ति । ३२६. णिरएसु घादि० ४-जह० वड्डी कस्स. ? अण्ण० सम्मा० साग० सन्च. विसुद्ध० अणंतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाणिदण हाणी एकदरत्थमवट्ठाणं । आउ० जह• जो अन्यतर अप्रमत्तसंयत अक्षपक और अनुपशामक सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभागवृद्धि करके अव. स्थित है, वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है। मोहनीयकर्मका यही भंग है। इतनी विशेषता है कि इसकी वृद्धि और हानि अनिवृत्तिकरण जीवके कहना चाहिए तथा अवस्थान अप्रमत्तसंयत जीवके कहना चाहिए। वेदनीय और नामकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? जो अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्याइष्टि परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला जीव अनन्तभाग वृद्धिको प्राप्त होता है. वह वृद्धिका स्वामी है और अनन्तभाग हानिको प्राप्त होता है,वह हानिका स्वामी है तथा इन दोनोंमेंसे कोई एक स्थानपर जघन्य अवस्थान होता है। गोत्रकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? जो अन्यतर सातवीं पृथिवीका जीव अभव्यप्रायोग्य उत्कृष्टविशुद्धिसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धिको प्राप्त हुआ है और अनन्तभाग बढ़ाकर वृद्धि करता है,वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है और उसीके तदनन्तर समयमें जघन्य अवस्थान होता है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें जो अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव सब पयाप्तियोंसे पर्याप्त होकर सर्वविशुद्धिको प्राप्त हो,सम्यक्त्वके अभिमुख हुमा है,वह जघन्य हानिका स्वामी है। आयुकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? जो अन्यतर जघन्य अपयाप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान और मध्यम परिणामवाला जीव अनन्तभाग घृद्धिको प्राप्त होता है,वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है, अनन्तभाग हानिको प्राप्त होता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमें से किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है। इसीप्रकार ओघ के समान पञ्चेन्द्रियद्विक, त्रसद्विक, पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी, क्रोधादि चार कषायवाले, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । ३२६. नारकियोंमें चार घातिकर्मोकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सम्यग्दृष्टि साकार-जागृत सर्वविशुद्ध जीव अनन्त भागवद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी , ता. आ. प्रत्योः अप्पमरा० सवेद• इति पाठः । २ ता. प्रतौ अणंतभागे पडि...... [भंगो तस्स जहादितस्सेच आ. अणंतभागे प्रती पडि"..."तस्स अहवही। तस्सेव इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy