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________________ १५२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे एवं याव उवरिमगेवजा ति । अणुदिस याव सव्वट्ठा ति देतोघं । णवरि गोद० अण्ण तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स अणंतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाइदूण हाणी एकदरत्थमवट्ठाणं। ____३३२. एइंदिएसु धादि०४ जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० बादर० सव्वविसुद्ध० अर्णतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाइदण हाणी एक्कदरत्थमवहाणं । सेसं तिरिक्खोघं । तेउ०. वाउ० घादि०४-गोद० जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० बादर० सव्वविसु० अणंतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाइदूण हाणी एक्कदरत्थमवट्ठाणं । सेसं अपजत्तभंगो। पत्तेय० पुढविभंगो। ____३३३. ओरालि० गोद तिरिक्खोघं । सेसं मणुसि भगो । ओरालियमि०घादि०४ जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० असंजदस० सागार० सव्वविसु० दुचरिमसमए सरीरपज्जत्ती गाहिदि त्ति पडिभग्गो तस्स जह० वड्डी । तस्सेव से काले जह० अवठ्ठाणं । ज० हाणी कस्स० ? तस्सेव सव्वविसु० से काले पजत्ती गाहिदि ति तस्स ज० हाणी । गोद० जह० वड्डी कस्स० ? अण्ण० बादरतेउका०-वाउ० जीव० दुचरिमसमए सरीरपज्जत्ती गाहिदि ति तस्स जह० वड्डी । तस्सेव से काले जह० अवठ्ठाणं । जह० हाणी कस्स० ? तस्सेव से काले पञ्जत्ती होहिदि त्ति । सेसमपजत्तभंगो।। चाहिए । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सामान्य देवोंके समान भंग है। इतनी विशेपता है कि गोत्रकमकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? जो अन्यतर तत्प्रायोग्य संलिष्टपरिणामवाला जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है, वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभाग हानिको प्राप्त होता है,वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एकके अवस्थान होता है। ३३२. एकेन्द्रियोंमें चार घातिकर्मोकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर बादर एकेन्द्रिय सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है,वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभाग हानिको प्राप्त होता है, वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमें से किसी एकके अवस्थान होता है। शेष कर्मोंका भंग सामान्य तिर्यचोंके समान है। अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में चार घातिकर्म और गोत्रकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक सर्वविशुद्ध जीव अनन्तभागवृद्धिको प्राप्त होता है,वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जो अनन्तभागहानिको प्राप्त होता है और वह जघन्य हानिका स्वामी है और इनमें से किसी एकके अवस्थान होता है। शेष कोकाभंग अपर्याप्तकोंके समान है। प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवोंमें पृथिवीकायिक जीवोंके समान भंग है। ३३३. औदारिककाययोगी जीवों में गोत्रकर्मका भंग सामान्य तियचोंके समान है। शेष कर्मोंका भंग मनुध्यिनियोंके समान है । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में चार घातिकर्मोकी जघन्यवृद्धिका स्वामी कौन है? जो अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि साकार जाग्रत और सर्वविशद्ध जीव द्विचरम समयमें शरीर पर्याप्तिको ग्रहण करेगा, अतएव प्रतिभन्न होकर जघन्य वृद्धि कर रहा है. वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है तथा उसीके तदनन्तर समयमें जघन्य अवस्थान होता है। जघन्यहानिका स्वामी कौन है ? वही सर्वविशुद्ध जीव तदनन्तर समयमें शरीरपर्याप्तिको प्राप्त होगा, वह जघन्य हानिका स्वामी है । गोत्रकर्मकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीव द्विचरम समयमें शरीर पर्याप्तिको प्राप्त होगा,वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। उसीके तदनन्तर समयमें जघन्य अवस्थान होता है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? वही जो तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको प्राप्त होगा, वह जघन्य हानिका स्वामी है। शेष कर्म-भंग अपर्याप्तकों के समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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