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________________ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे खेत्ताणुगमो २८९. खेत्तं दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० सत्तणं क० अवत्त०बंधगा केवडि खेत्ते १ लोगस्स असंखेज०भागे । भुज०-अप्प०-अवढि० आउ० सव्वपदा केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे। एवं ओघभंगो तिरिक्खोघं सव्वएइंदिय-सव्वपंचकायाणं बादरवजाणं' कायजोगि-ओरालि-ओरालियमि०२-कम्मह०-णqस० कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज. अचक्खु०-तिण्णिले०-भवसि० अब्भवसि०-मिच्छा०-असण्णि० -आहार०-अणाहारग त्ति । सेसाणं संखेंज-असंखेज-अणंतरासीणं सव्वपदा केवडि० ? लो० असं० । णवरि बादरएइंदि० तस्सेव पजत्ता अपञ्जत्ता आउ० सव्वप० लोग० संखेजदिभा० । एवं बादरवाउ० तस्सेव अपज्जत्ता० । सेसवादरकायाणं पजत्तअपजत्ता लो.' असंखेंजदिभा० । सेसं एइंदियभंगो । बादरवाउपजत्ता आउ० लो० संखेंज० । [ सेसं सव्वलो. ] फोसणाणुगमो २६०. फोसणाणुगमेण दुवि०--ओघे० आदे० । ओघे० सत्तण्णं क० अवत्त० लो. असंखेंज० । सेसपदा आउ० सव्वपदा० बंधगेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सबलोगो । एवं क्षेत्रानुगम २८९. क्षेत्र दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सात कर्मों के प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकका असंख्यातवाँ भाग प्रमाण क्षेत्र है । भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका तथा आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। इसी प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यंच, बादरोंको छोड़कर सब एकेन्द्रिय व सव पाँचों स्थावर कायिक, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी,नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीनलेश्यावाले, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए। शेष संख्यात, असंख्यात और अनन्त राशिवाली मार्गणाओंमें सब पदोंके वन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है। लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इतनी विशेषता है कि बादर एकेन्द्रिय और उनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त जीवोंमें आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीवोंका लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार बादर वायुकायिक और उनके अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए। शेष बादरकाय व उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। शेष भंग एकेन्द्रियोंके समान है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें आयुकर्मके सब पदोंके बन्धक जीवोंका लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र है। शेष सब लोक क्षेत्र है। स्पर्शनानुगम २६०. स्पर्शानानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सात कर्मों के अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। १ ता. आ. प्रत्योः बादरपजत्तं इति पाठः। २ ता. प्रतौ काजोगिओरालियमि० इति पाठः। ३ ता. प्रतौ अरुभवअसण्णि. इति पाठः। ४ ता. प्रतौ पजत्ताअपजत्ता। अपजत्ता इति पाठः । ५ ता. आ. प्रत्योः पजत्तवजाणं लो० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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